________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobetirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
॥ सर्वार्थसिद्धिवचनिका पंडित जयचंदजीकृता ॥ दशम अध्याय ॥ पान ७७५ ।।
SAKSPIRINGAPRIMARRIAGARGOPOSPRINFORMINORN
करि अपूर्वकरण नामा क्षपकश्रेणीका गुणस्थानकू भोगिकरि तहां नवीन शुभपरिणाम तिनमें क्षीण कीये हैं पापप्रकृतिनिके स्थिति अनुभाग जानें, बहुरि वधाया है शुभकर्मका अनुभाग जाने, ऐसा होय अनिवृत्तिकरणपरिणामकी प्राप्तिकरि अनिवृत्तिवादरसांपरायनाम नवमां गुणस्थानकू चढिकरि तहां कषायनिका अष्टक जो अप्रत्याख्यानावरण प्रत्याख्यानावरण ताका सत्तामेंसू नाशकरि फेरि नपुंसकवेदका नाशकरि फेरि स्त्रीवेदका क्षयकरि बहुरि नोकषायका षट्क हास्य रति अरति शोक भय जुगुप्सा इनकू पुरुषवेदवि क्षेपणकरि क्षय करै। बहुरि पुरुषवेदकू क्रोधसंज्वलनमें क्षेपै । बहुरि क्रोधसंज्वलनळू मानसंज्वलनविर्षे क्षेपै । बहुरि मानसंज्वलनकू मायासंज्वलनविर्षे क्षेपे । बहुरि मायासंज्वलनकू लोभसंज्वलनविर्षे क्षेपै । ऐसें संक्रमणविधानकरि अनुक्रमणतें क्षयकरि बादरकृष्टिका विभागकरि, लोभसंज्वलनकू सूक्ष्म करि, अर सूक्ष्मसांपराय नाम क्षपक गुणस्थान दशमांकू भोगिकरि, तहां समस्तमोहनीयकर्मळू मूलते नाशकरि, क्षीणकषायपणाकू पायकरि उताया है मोहनीयकर्मका बोझ जामें तिस बारमा गुणस्थानका उपांत्य कहिये अंत्यसमय ताके पहले समये निद्रा प्रचला नाम दोय प्रकृतिका क्षय करि, बहुरि पांच ज्ञानावरण च्यारि दर्शनावरण पांच अंतराय इन चौदह प्रकृतिनिका बारमा गुणस्थानके अंतसमये क्षयकरि,
EassertivatBrezebratviadioudsosorts
For Private and Personal Use Only