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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ सर्वार्थसिदिवचनिका पंडित जयचंदजीकृता ॥ नवम अध्याय ॥ पान ६४३ ॥ | निर्माण, तीर्थकर ए तीस । बहुरि तिसही अपूर्वकरणके अंतके समयविर्षे हास्य रति भय जुगुप्सा | ए च्यारि प्रकृतिबंध हैं । सो ए तहां संबंधी तीव्रकषायके निमित्ततें बंधे हैं। तातें तिस तिस भावसंबंधी कषायके अभाव होते तिनका तिस भावतें उपरि बंधका अभाव होय है । तहां संवर भया ॥ बहुरि अनिवृत्तिबादरसांपरायके आदिसमयतें लगाय संख्यातभागविर्षे पुरुषवेद, क्रोध संज्वलन ए दोय बंध होय हैं । ताके उपरि बाकी रहे जे संख्यातभाग तिनविर्षे मान माया ए दोय बंध है। बहुरि तिसहीके अंतके समयवि लोभ संज्वलन बंधै है ऐसे ए पांच प्रकृति मध्यमकषायके निमित्तते बंध होय है । सो तिस कषायके अभाव होते कहे तिस भागके उपरि तिनका संवर होय है । बहुरि सूक्ष्मसांपरायविर्षे सूक्ष्मलोभकषाय पाईये है, याकू मंदभी कहिये , याके निमित्ततें पांच ज्ञानावरण, च्यारि दर्शनावरण, यश कीर्ति, उच्चगोत्र, पंच अंतराय ए सोलह प्रकृतिका आश्रय होय है । सो तिस || कषायका अभाव होतें उपशांतकषायादिकवि तिनका बंध नाहीं होय है । बहुरि केवल योग के निमित्ततें सातावेदनीयका आश्रव उपशान्तकषाय क्षीणकषाय सयोगकेवलीकै होय है सो आगें | योगके अभावतें अयोगकेवलीके तिसकाभी बंध नाहीं हैं । इहां कोई पूछे है, गुणस्थाननिके क्रमकरि संवर कह्या, सो गुणस्थान कहा है ? तहां कहिये, SINEAPARVAPRPRIMEANPARKHANPARKHAPATROPARKETPRIVACOPER For Private and Personal Use Only
SR No.020662
Book TitleSarvarthsiddhi Vachanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychand Pandit
PublisherKallappa Bharmappa Nitve
Publication Year1833
Total Pages824
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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