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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ सर्वार्थसिद्धिवचनिका पंडित जयचंदजीकृता ॥ अष्टम अध्याय ॥ पान ६३२ ॥ घातप्रकृति अघातप्रकृति । तहां ज्ञानावरण दर्शनावरण मोहनीय अंतराय एतौ घातिकर्म हैं । अर वेदनीय नाम आयु गोल ए अघातिकर्म हैं । बहुरि घातिकर्मकी प्रकृति दोयप्रकार है, सर्वघाति देशघाति । इहां केवलज्ञानावरण निद्रा निद्रानिद्रा प्रचला प्रचलाप्रचला स्त्यानगृद्धि केवलदर्शनावरण दर्शनमोह चारित्रमोहकी संज्वलननोकषायविना बारह कषाय ऐसें बंधअपेक्षा वीस प्रकृति सर्वघाति हैं । बहुरि ज्ञानावरण च्यारि दर्शनावरणकी तीनि अंतराय पांच संज्वलननोकषाय तेरा ऐसें पचीस देशघाति हैं । यहभी बंधअपेक्षा जाननी । बहुरि अन्यविशेष है सो कहिये है, शरीर ५ बंधन ५ संघात ५ संस्थान ६ संहनन ६ अंगोपांग ३ स्पर्श ८ रस ५ गंध २ वर्ण ५ प्रत्येक साधारण २ स्थिरअस्थिर २ शुभअशुभ २ अगुरुलघु १ उपघात १ परघात १ उद्योत १ निर्माण १ ए वासठि प्रकृति तौं पुद्गलविपाककी कहिये पुद्गलही कूं रस दे हैं, शरीरसंबंधी जाननी । बहुरि आर्य ४ क्षेत्रविपाकी कहिये जीवके प्रदेशन के आकाररूप विपाक इनके हैं । बहुरि आयु ४ भवविपाककी कहिये इनका भवसाधारणमात्र फल है । अब शेषप्रकृति जीवविपाककी कहिये । ते जीवके उपयोग आदि शक्तिकूं विपाक दे हैं । ज्ञानावरण ५ दर्शनावरण ९ अंतराय ५ मोहनीय २८ ऐसें घातिकर्म की तौ ४७| बहुरि वेदनीय २ गोत्रकर्मकी २ नामकी २७ तिनके नाम For Private and Personal Use Only
SR No.020662
Book TitleSarvarthsiddhi Vachanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychand Pandit
PublisherKallappa Bharmappa Nitve
Publication Year1833
Total Pages824
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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