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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ सर्वार्थसिद्धिवचनिका पंडित जयचंदजीकृता ॥ अष्टम अध्याय ॥ पान ६२८ ॥ आयु इनकी जघन्यस्थिति अंतर्मुहूर्त की है। तहां ज्ञानावरण दर्शनावरण अंतराय इन तीनकी तौ जघन्यस्थिति सूक्ष्मसांपरायगुणस्थानवालेकें बंधे है । बहुरि मोहनीय कर्मकी जघन्यस्थिति अनुवृत्ति दरस पराय कहिये नवमां गुणस्थानवालेकें बंधे है । बहुरि आयुकर्मकी जघन्य संख्यातवर्षका जिनका आयु ऐसें कर्मभूमि मनुष्य तिर्यचनिकें बंधे है | आगे पूछे है, जो, दोऊ प्रकारकी स्थिति ज्ञानावरणआदि कर्मनिकी कही, अब इनका अनुभवका कहा लक्षण है सो कहौ । ऐसें पूछें सूत्र कहै हैं॥ विपाकोऽनुभवः ॥ २१ ॥ - याका अर्थ - कर्मप्रकृति पचकर उदय आवै ताका रस अनुभवमें आवै सो अनुभव कहिये | sti aurat दोय अर्थ हैं, एक तौ विशिष्ट पाक होय सो विपाक कहिये, दूजा नाना पाक होय सो विपाक कहिये । तहां पूर्वै कहे जे तीव्र मंद कषायरूप भावाश्रवके विशेष तिनतें कर्मनि पाक समें विशेष होय, सो तौ विशिष्ट पाक है । बहुरि द्रव्य क्षेत्र काल भव भावके निमित्तके भेद भया जो नानाप्रकारपणा जामें ऐसा जो कर्मका पचना, सो विपाक है । तहां इनमें शुभपरिणामनिके प्रकर्षतैं तौ शुभप्रकृतिका उत्कृष्ट अनुभव बंधे है । अर अशुभप्रकृतिनिका For Private and Personal Use Only
SR No.020662
Book TitleSarvarthsiddhi Vachanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychand Pandit
PublisherKallappa Bharmappa Nitve
Publication Year1833
Total Pages824
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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