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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ सर्वार्थसिद्धिवचनका पंडित जयचंदजीकृता ॥ अष्टम अध्याय ॥ पान ६१९ ।। बहुरि जाके उदयतें औदारिकआदि शरीरनिके आकार निपजै, ते संस्थाननाम हैं । सो छहप्रकार है समचतुरस्रसंस्थान, न्यग्रोधपरिमंडलसंस्थान, स्वातिकसंस्थान, कुब्जकसंस्थान, वामनसंस्थान, संस्थान | तहां जो ऊपर नीचें समान बराबरि विभागरूप शरीरके अवयवनिका स्थापन होय ' जैसें प्रवीण कारीगरका बनाया सर्व अवयव यथास्थान सुंदर होय तैसें ' समचतुरस्रसंस्थान है । बहुरि जो शरीर के अवयव उपरिलै तौ बडे होंय नीचे छोटे होय वडवृक्षकीज्यों सो न्यग्रोधपरिमंडल है । बहुरि याके उलटा उपरितें छोटे होय नीचे चौडे होय सो स्वातिक है, जैसें वंबी होय तैसा आकार हो । बहुरि जामें पीठि बड़ा होय सो कुब्जक है । बहुरि जामें सर्वही अंग छोटे होय सो वामन है । बहुरि जामें सर्वही अंग उपांग रुंड मुंड बुरे होय सो हुंडक है ॥ बहुरि जाके उदयतें अस्थि कहिये हाड तिनकी बंधनका विशेष होय सो संहनननाम है । सो छप्रकारका है । तहां जामें हाड अरु संधिके बडे कीला वज्रमयी होंय अर वज्रमयी नसनिके वलय बंधनकर बंधे होय, सो वज्रवृषभनाराचसंहनन है । बहुरि जामें वज्रमयी हाड संधिके तथा बडे कीला होय सो वज्रमयी वलयबंधनकरि रहित होय वज्रनाराचसंहनन है । बहुरि जामें हाड तथा संधि के कीला तौ होय परंतु वज्रमयी न होय अर वज्रमयी वलयबंधनभी न होय, सो For Private and Personal Use Only
SR No.020662
Book TitleSarvarthsiddhi Vachanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychand Pandit
PublisherKallappa Bharmappa Nitve
Publication Year1833
Total Pages824
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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