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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ सर्वार्थसिद्धिवचनिका पंडित जयचंदजीकृता ॥ अष्टम अध्याय ॥ पान ५९६ ।। कीया है, कहूं हिंसा करना धर्म कह्या है, तातें विरुद्धवचन प्रमाणभूत नाहीं । बहुरि अरहंतभाषित आगम में हिंसाका निषेघही है, तातें प्राणीनिका वध धर्मका कारण नाहीं । फेरि वह कहै, जो, अरहंता आगम कैसे प्रमाण करो हौ ? ताकूं कहिये, जो, अरहंत सर्वज्ञ वीतराग है, ताके वचन सत्यार्थ हैं, अतिशयरूप ज्ञानकी खानि हैं, यामें अनेक चमत्काररूप स्वरूप लिखे हैं, ता प्रमाण हैं | फेरि कहै हैं, जो, अन्यके आगममें भी चमत्काररूप है लिखे हैं । ताकूं कहिये, जो, चमत्कारस्वरूप लिख्या होगा, सो अरहंतके आगममेंसूंही लेकरि लिख्या होगा । फेरि कहै, जो, यह तौ तुमारी श्रद्धामात्रतैं कहौ हौ । ताकूं कहिये, जो, यह न्याय है, जहां बहुतवस्तुनिका बहुतप्रकारकरि वर्णन होय ऐसा पूर्ण वर्णन अन्य जायगा नाहीं होय तब जाणिये, जो, जहां पूर्णरूप लख्या होय सो तौ आदि है मूल है अर जहां थोरा लिख्या होय तहां जानिये पूर्णमेंसूं लेकरि अपना नाम चलाया है । फेरि कहै, जो, अन्यके आगममें अरहंतके आगमतें लेकर लिखी है तो भी प्रमाणभूत क्यों न मानिये ? ताकूं कहिये, जो, लिखे हैं ते साररहित हैं । जातें आगममें सर्वही वस्तुनिक स्वरूप लिया था तिनमेंसूं पांच वस्तु साररहित लेकरि लिख्या तो ते निरर्थक हैं | For Private and Personal Use Only
SR No.020662
Book TitleSarvarthsiddhi Vachanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychand Pandit
PublisherKallappa Bharmappa Nitve
Publication Year1833
Total Pages824
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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