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॥ सर्वार्थसिद्धिवचनका पंडित जयचंदजीकृता ॥ सप्तम अध्याय ॥ पान ५७५ ॥
कामका वधता परिणाम सो कामतीत्राभिनिवेश कहिये जामें कामसेवनेका निरंतर अभिप्राय प्रवर्ते ते ए पांच स्वदार संतोष नामा व्रतके अतीचार कहे हैं |
आगे पांचवा अणुव्रत के अतीचार कहैं हैं |
॥ क्षेत्रवास्तु हिरण्यसुवर्णधनधान्यदासीदास कुप्यप्रमाणातिक्रमाः ॥ २९ ॥
याका अर्थ - क्षेत्र वास्तु, हिरण्य सुवर्ण, धन धान्य, दासी दास, कुप्य इनका प्रमाणतें उल्लंघना, सो पंचम अणुव्रत के अतीचार हैं । तहां क्षेत्र तौ नांज उपजनेका आधार ताकूं खेत कहिये, वास्तु अगार घरकूं कहिये, हिरण्य रूपा आदिका व्यवहार, सुवर्ण सोना, धन गऊ आदि, धान्य तण्डुल, दासी दास चाकर स्त्री पुरुष, कुप्य कपास रेसम चंदन आदि । तहां क्षेत्र वास्तु, हिरण्य सुवर्ण, धन धान्य, दासी दास, ऐसें च्यारि तौ दोयदोयका युगल लेना | बहुरि एक कुप्य ऐसें ए पांच भये । तिनका परिमाण कीया होय जो मेरै एताही परिग्रह है अन्यका त्याग है फेरि तिसकूं अतिलोभके वशतें उल्लंघै वधाय ले, सो ए पांच अतीचार परिग्रहपरिमाणव्रत के हैं | ऐसें पांच अणुव्रत अतीचार तौ कहे, आगें शीलाने के अतीवार कहैं हैं । तहां प्रथमही दिग्विरति नामा शीलके कहे हैं, ताका सूत्र -
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