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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ఆడదానిలయనికectioteకులందరకుండుకుంటున్నను ॥ सर्वार्थसिद्धिवचनिका पंडित जयचंदजीकृता ॥ सप्तम अध्याय ॥ पान ५७४ ॥ लेना इत्यादि कूडा प्रयोग करना, सो हीनाधिकमानोन्मान है । बहुरि खोटे सोना रूपा बणाय ठिगनेके अर्थि व्यवहार करै परकू खोटी वस्तुकू क्रियाकरि आच्छी दिखाय दे ऐसें कूड करै, सो प्रतिरूपकव्यवहार है । ऐसें ए पांच अदत्तादानविरति अणुव्रतके अतीचार हैं ।। आगे ब्रह्मचर्य अणुव्रतके अतीचार कहै हैं॥ परविवाहकरणेत्वरिकापरिगृहीतापरिगृहीतागमनानङ्गक्रीडाकामतीव्राभिनिवेशाः ॥२८॥ याका अर्थ-- परविवाह करणा परिगृहीतइत्वरिकागमन अपरिगृहीतइत्वरिकागमन अनंगक्रीडा कामतीव्राभिनिवेश ए पांच ब्रह्मचर्य अणुव्रतके अतीचार हैं । तहां कन्याका देना परिणावना सो विवाह है, सो परका विवाह करणा, सो परविवाहकरण कहिये । बहुरि जो परपुरुषनिप्रति | गमन करै सो इत्वरी कहिये इस शब्दकै निंदा अर्थविर्षे कप्रत्ययतें इत्वरिका ऐसा नाम भया । सो एकपुरुषही जाका भरतार होय सो परिगृहीता कहिये, तिसप्रति गमन करिये सो परिगृहीत | इत्वरिकागमन कहिये । बहुरि जो वेश्यापणाकरि पुंश्चली होय अनेक जाके भरतार होय सो अप रिगृहीता इत्वरिका कहिये, तिसप्रति गमन करै सो अपरिगृहीताइत्वरिकागमन कहिये । बहुरि || अंग कहिये प्रजननलिंग तथा योनि इन विना अन्यरीति क्रीडा, सो अनंगक्रीडा कहिये । बहुरि | RADExaspertoisrueritasexsareatabatcheatrics For Private and Personal Use Only
SR No.020662
Book TitleSarvarthsiddhi Vachanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychand Pandit
PublisherKallappa Bharmappa Nitve
Publication Year1833
Total Pages824
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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