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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ॥ सर्वार्थसिद्धिवचनिका पंडित जयचंदजीकृता ॥ सप्तम अध्याय ॥ पान ५३९ ॥ | भ्रमते खाडामें पड्या जो हस्ती तिसकीज्यों परवश हूवा वध बंधन अतिक्लेश आदिकू भोगवै है । मोहका पीड्या कार्य अकार्यकू न गिणता अपना कल्याणरूप कार्य किछुभी नाहीं आचरण करै है । बहुरि परकी स्त्रीके आलिंगन सेवनविर्षे करी है रति जानें सो इसलोकविर्षे वैरके निमित्त लिंगछेदन वध बंधन धनहरण आदि कष्टनिळू पावै है । बहुरि परलोकविर्षे दुर्गति पावै है। बहुरि निंदनीक होय है, यातें अब्रह्मचर्यपापते छुटना अपना हित है, ऐसी भावना राखणी ॥ तैसेंही परिग्रहवान पुरुष है सो जे परिग्रहके अर्थि चोर आदि हैं तिनके पीडा | देनेयोग्य होय है। धनवानकू चोर मारि जाय है। जैसे कोई पंछी मांसकी डलीकू चूंचमें ले चलै, तब मांसके अर्थि अन्यपक्षी ताकू चूंचनितें मारे, दुःख दे; तैसें धनके लोभी | धनवानकू दुःख दे ॥ बहुरि धनके परिग्रहके उपार्जन करना रक्षा करनावि बडा कष्ट है, तथा नष्ट होय जाय, जाता रहै तब बडा दुःख उपजै इत्यादि अनेक दोषनिकू प्राप्त होय है। बहुरि यातें तृप्तिभी नाहीं होय है । जैसें अमि इंधनतें तृप्त होय, तो तृष्णावान् धनतें तृप्त होय । बहुरि लोभका पीड्या | कार्य अकार्यकू गिनें नाहीं । बहुरि या• पापते परलोकविर्षे अशुभगति पावै है । बहुरि सर्व | For Private and Personal Use Only
SR No.020662
Book TitleSarvarthsiddhi Vachanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychand Pandit
PublisherKallappa Bharmappa Nitve
Publication Year1833
Total Pages824
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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