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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ सर्वार्थसिद्धिवचनिका पंडित जयचंदजीकृता । षष्ठ अध्याय ॥ पान ५२० ॥ | लीये दुःख है, बहुरि प्यारेका वियोग अनिष्टसंयोग चाहीवस्तुका अलाभ इत्यादिसहित है ऐसे संसारतें भय करना, सो संवेग है ॥ ५॥ पैलेकू प्रीतिका कारण वस्तुका देना, सो त्याग है । तहां पात्रके निमित्त आहार देना, सो तिस दिनविर्षे वाकै प्रीतिका कारण है । अभयदान देना सो तिस भववि प्रीतिका कारण है । बहुरि सम्यग्ज्ञान है सो अनेकलाख भवनिके दुःख मेटनका कारण है । यातें ए तीनिप्रकारके त्याग हैं सो करै ॥ ६॥ अपना वीर्य शक्तिकू छिपायकरि मार्ग” अविरोधी कायक्लेश करै, सो तप है । तहां ऐसा विचारै, जो, यह शरीर है सो दुःखका कारण अनित्य है, अशुचि है, याका स्वइच्छा भोगनिकरि पोषना युक्त नाही, बहरि अशुचिभी है, तौऊ गुणरूप रत्ननिका संचय करनेका उपकारी है, तातें विषयसुखनिका संगम छोडि या• अपने कार्यविर्षे लगावना यथाशक्ति मार्ग” अविरोधी कायक्लेश करना, सो तप है । अनेक व्रतशीलकरि सहित जो मुनि ताकै कारणते विघ्न आया ताका दुरि करना, जाते यामें बहुत उपकार है 'जैसे काहूकै अनेक वस्तुनिकरि भस्खा भंडारविर्षे अमि लागी होय ताका बुझावना तैसें' यह साधुसमाधि है ॥ ७ ॥ गुणवान् जे साधुजन तिनकै | कोई कारणकरि दुःख आय पडै ताका निर्दोषविधानकरि दृरि करना, सो वैयावृत्य है ॥९॥ aachaartsixvedesibserasaisaralbruartesexianterashes For Private and Personal Use Only
SR No.020662
Book TitleSarvarthsiddhi Vachanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychand Pandit
PublisherKallappa Bharmappa Nitve
Publication Year1833
Total Pages824
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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