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॥ सर्वार्थसिद्धिवचनिका पंडित जयचंदजीकृता ॥ षष्ठ अध्याय ॥ पान ४९२ ॥
विशेषनिकरि भेदरूप कीजिये है । बहुरि त्रिआदि च्यारि शब्द हैं ते सुचप्रत्ययान्त हैं, ते यथानुक्रम | संबंधकरि लेने । संरंभादि तीनि, योग तीनि, कृत आदि तीनि, कषाय च्यारि इन गणतीकी रीति सुच्प्रत्ययकरि जाणिये है । बहुरि एकशः शब्दकरि वीप्स्या कही है । एकएकप्रति तीनि आदि भेद | प्राप्त करने, सोही कहिये हैं। क्रोधकृत कायसंरंभ, मानकृत कायसंरंभ, मायाकृत कायसंरंभ, लोभकृत कायसंरंभ, क्रोधकारित कायसंरंभ, मानकारित कायसंरंभ, मायाकारित कायसरंभ, लोभकारित कायसंरंभ, क्रोधानुमत कायसंरंभ, मानानुमत कायसंरंभ, मायानुमत कायसंरंभ, लोभानुमत कायसंरंभ । ऐसें बारह कायसंरंभ भये । ऐसें वचनयोग मनोयोगविर्षे बारहबारह प्रकार संरंभ होय । ते भेले किये छत्तीस होय । तैसेंही छत्तीस समारंभ होय । तथा तैसेंही आरंभ होय । सर्व जोडि जीवाधिकरण एकसो आठ होय हैं। बहरि सूत्र में चशब्द है सो अनंतानुबंधी अप्रत्याख्यानावरण प्रत्याख्यानावरण संज्वलन जे कषायके भेद च्यारि तिनकरि च्यारिसे बत्तीस भेद होय हैं। ऐसे असंख्यातभेदके समुच्चयके अर्थि हैं। आगें दूसरा अजीवाधिकरणके भेद जाननेके अर्थि सूत्र कहै हैं
॥ निर्वर्तनानिक्षेपसंयोगनिसर्गा द्विचतुर्द्वित्रिभेदाः परम् ॥९॥
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