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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Rex 2.30 20 www.kobatirth.org ॥ सर्वार्थसिद्धिवचनिका पंडित जयचंदजीकृता ।। षष्ठ अध्याय ॥ पान ४९९ ॥ वचन है | से यह अधिकरण आश्रवका है ऐसा संबंध अर्थके वशर्तें सूत्रमें कारण ॥ आगें जीवाधिकरण के भेद जानने के अर्थि सूत्र कहै हैं— Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ आद्यं संरम्भसमारम्भारम्भयोगकृतकारितानुमतकषायविशेषैस्त्रिस्त्रिास्त्रश्चतुश्वकेशः॥८॥ याका अर्थ - आदिका जीवाधिकरण है, सो संरंभ समारंभ आरंभ ए तीनि बहुरि मन वचन काय योग तीनि कृत कारित अनुमोदना ए तीन, क्रोध मान माया लोभ कषाय च्यारि ए एक एकप्रति देना ऐसा परस्पर गुणे एकसौ आठ भेदरूप है । तहां प्रमादी जीवकै हिंसाआदिके विषे प्रयत्न कहिये उद्यमरूपपरिणाम सो संरंभ है । बहुरि हिंसा के कारणका अभ्यास करना सामग्री मिलावणी सो समारंभ है । प्रक्रम कहिये आरंभ करणा सो आरंभ है । ऐसें ए तीनि भये । बहुरि योग पूर्वै कही । मन वचन काय भेद लिये तीनि । बहुरि कृत कहिये आप स्वाधीन होय करै सो, कारित कहिये परकने करावे सो, अनुमत कहिये पैला करै, ता हूं आप मन वचन कायकरि भला जाने ऐसें तीनि । बहुरि क्रोध मान माया लोभ ए च्यारि कषाय इनका लक्षण पूर्वे ह्या सोही ऐसें । विशेषशब्द इन सर्वनिर्के संबंध करणा । संरंभविशेष समारंभविशेष इत्यादि । जाकर अर्थ अन्यअर्थ लेकर जुदा कीजिये सो विशेषशब्दका अर्थ है । ऐसें आदिका जीवाधिकरण है, सो एते For Private and Personal Use Only
SR No.020662
Book TitleSarvarthsiddhi Vachanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychand Pandit
PublisherKallappa Bharmappa Nitve
Publication Year1833
Total Pages824
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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