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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ANDSCAD www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ सर्वार्थसिद्धिवचनिका पंडित जयचंदजीकृता ॥ पंचम अध्याय ॥ पान ४८९ ॥ आत्मा के प्रदेशनिका चलना सो योग है । सो निमित्तके भेदतें तीनि प्रकार भेद कीजिये है, काययोग, वचनयोग, मनोयोग | तहां आत्माके वीर्यांत रायकर्मका क्षयोपशम होतें औदारिक आदि सात काय तिनकी वर्गणामें एक कायवर्गणाका अवलंबनकी अपेक्षातें भया जो आत्मप्रदेशनिका चलना, सो काययोग है । बहुरि शरीर नामा नामकर्मके उदयकरि कीया जो वचनवर्गणा ताका अवलंबन के होते, बहुरि वीर्यांतरायकर्म तथा श्रुत अक्षर आदि ज्ञानावरण कर्मका क्षयोपशमं करि कया जो अभ्यंतर वचनकी लब्धि कहिये बोलनेकी शक्ति ताकी संनिधि होतें, वचनपरिणामके सन्मुख भया जो आत्मा ताके प्रदेशनिका चलना, सो वचनयोग है । बहुरि अभ्यंतर तौ नोइन्द्रि यावरण नामा 'ज्ञानावरणकर्म अर अंतरायकर्मके क्षयोपशमरूप लब्धि ताका निकट होतें, अर बाह्य मनोवणाका आलंबन होते मनःपरिणाम के सन्मुख जो आत्मा ताकें प्रदेशनिका चलना, सो मनोयोग है । आगे पूछें हैं, जो कर्म पुण्यपापभेदकर दोयप्रकार है, तिसका आस्रवका कारण योग है सो अविशेषकरिहीं है, कि कुछ विशेष है? ऐसें पूछे सूत्र कहे हैं ॥ शुभः पुण्यस्याशुभः पापस्य ॥ ३ ॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020662
Book TitleSarvarthsiddhi Vachanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychand Pandit
PublisherKallappa Bharmappa Nitve
Publication Year1833
Total Pages824
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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