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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ सर्वार्थसिद्धियचनिका पंडित जयचंदजीकृता॥ पंचम अध्याय ॥ पान ४४८ ॥ | तो बलाहक कहिये मेघका गर्जना आदिक है । बहुरि प्रायोगिक च्यारि प्रकार है । तत वितत घन सुापर ऐसें । तहां चर्मके तवनेते ढोल नगारे ढफ आदिकरि उपजै सो तौ तत कहिये । बहुरि तांति तारकरि वीण सुघोष सहतार तमूरे आदिकरि उपजै सो वितत है । बहुरि ताल घंटाका हलावना आदिकरि होय सो घन है । बहुरि वंशुरी शंख आदितें उपजै सो सुषिर है ।। बहुरि बंध दोयप्रकार है, वैस्रसिक प्रायोगिक । तहां पुरुषके प्रयत्नकी अपेक्षाते रहित होय, सो वैससिक है। सो रूक्ष सचिक्कण गुणके निमित्ततें वीजिली उल्का आदि अरु इन्द्रधनुष आदि होय है। बहुरि पुरुषके प्रयत्नतें होय सो प्रायोगिक है । सो अजीवसंबंधी तौ लाखकै अर काष्ठकै बंधान होय, सो है । बहुरि कर्मनोकर्मका बंधान होय है, सो जीव अजीव दोयसंबंधी है ॥ बहुरि सूक्ष्म दोयप्रकार है, अन्त्य आपेक्षिक । तहां परमाणु तो अन्त्यसूक्ष्म है । वहुरि बीलफलतें सूक्ष्म आंवला तिनतें सूक्ष्म बोर इत्यादि आपेक्षिक सूक्ष्म है ॥ बहुरि स्थौल्यभी दोयप्रकार है, अन्त्य आपेक्षिक । तहां जगद्यापी महास्कंध तौ अंत्य | स्थौल्य है । बहुरि बोरतें बड़ा आंवला, आवलातें बड़ा बीलफल, बीलतें बडा तालफल इत्यादि आपेक्षिक स्थौल्य है। For Private and Personal Use Only
SR No.020662
Book TitleSarvarthsiddhi Vachanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychand Pandit
PublisherKallappa Bharmappa Nitve
Publication Year1833
Total Pages824
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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