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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ACADAM www.kobatirth.org ॥ सर्वार्थसिद्धिवचनिका पंडित जयचंदजीकृता ॥ पंचम अध्याय ॥ पान ४४७ ॥ पवन के विषै रस गंध रूप ए तीनि गुण नाहीं हैं ऐसा कहें हैं, तिनका निषेध इस सूत्र में भया । जा पृथ्वी जल अनि पवन ए च्यान्यही पुद्गलद्रव्यके विकार हैं, पुद्गल हैं ते स्पर्श आदि व्याखौंही गुण निहित हैं । पृथ्वीआदिविषै व्याय गुण अनुमान आगमप्रमाणकरि सिद्ध होय हैं । बहुरि पृथ्वीतें जल होना, जलतें पृथ्वी होना, पाषाण काष्ठतें अनि होना, अभितें पृथ्वी होना इत्यादि जातिसंकर देखिये है । तातें अन्यमतीका कहना प्रमाणसिद्ध नाहीं हैं ॥ आगैं तिस पुद्गलहीके विकारके विशेषके जनानेकं सूत्र कहैं हैं ॥ शब्दबन्धसौक्ष्म्यस्थौल्यसंस्थान भेदतमश्छायाऽऽतपोद्योतवन्तश्च ॥ २४ ॥ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir याका अर्थ - शब्द बंध सौक्ष्म्य स्थौल्य संस्थान भेद तम छाया आतप उद्योत इनसहित हैं भी पुद्गल हैं । तहां शब्द दोयप्रकार हैं, भाषास्वरूप अभाषास्वरूप । तहां भाषास्वरूप दोयप्रकार है, अक्षरसहित अक्षररहित । तहां अक्षरसहित तौ संस्कृत देशभाषारूप आर्य म्लेच्छके व्यवहारकूं कारण शास्त्रका प्रगटकरणहारा है । बहुरि अक्षररहित द्वीन्द्रिय आदि जीवनिकै पाईये है । सो सूक्ष्मज्ञान के स्वरूप कहने कूं कारण है । सो यह भाषास्वरूप तो सर्वही प्रायोगिक है, पुरुषके प्रयत्नतें होय है । बहुरि अभाषास्वरूप शब्द है सो दोयप्रकार है, प्रायोगिक वैखसिक । तहां वैखसिक For Private and Personal Use Only BrentWire
SR No.020662
Book TitleSarvarthsiddhi Vachanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychand Pandit
PublisherKallappa Bharmappa Nitve
Publication Year1833
Total Pages824
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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