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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ सर्वार्थसिद्धिवचनिका पंडित जयचंदजीकृता । पंचम अध्याय ॥ पान ४२५ ॥ बहुरि तीनि आदि संख्यात असंख्यात अनंतके स्कंधनिका भी है । बहुरि तीनि प्रदेशनिविर्षे तीन परमाणु खुली तथा बंधीका अवगाह है । बहुरि च्यारि आदि संख्यात असंख्यात अनंतके स्कंधनिकाभी है । ऐसें च्यारि आदि संख्यात लोकाकाशके प्रदेश हैं, तहांताईं भाज्यरूप पुद्गलनिका अवगाह जानना ॥ इहां प्रश्न, जो, अमूर्तिक द्रव्यनिका तौ एकक्षेत्रविषै अवगाह अविरोधरूप होय बहुरि मूर्ति - कद्रव्यकें कैसें अविरोधरूप होय? ताका समाधान, इन मूर्तिकद्रव्यनिकेंभी अवगाहनशक्ति है । तथा सूक्ष्मपरिणमन ऐसा होय है, तातैं विरोध नाहीं । जैसैं एक घर में अनेक दीपगनिका प्रकाश समावै तैसें जानना तथा आगमप्रमाणकरि जानना । इहां उक्तं च गाथा है, ताका अर्थ - यह लोकाकाश है, सो सूक्ष्म बादर जे अनंतानंत अनेकप्रकारके पुद्गलद्रव्य, तिनकरि सर्वप्रदेशनिविषै जैसे गाढ़े खूंदि खूंद भरे तैसें संचयरूप भरे है । ऐसाही द्रव्यस्वभाव है सो स्वभावविषै तर्क नाहीं ॥ बहुरि इहां कुपासपिंडका दृष्टांत है ॥ -- आ जीवनका कैसें अवगाह है? ऐसें पूछे सूत्र कहै हैं॥ असंख्येयभागादिषु जीवानाम् ॥ १५ ॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020662
Book TitleSarvarthsiddhi Vachanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychand Pandit
PublisherKallappa Bharmappa Nitve
Publication Year1833
Total Pages824
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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