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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ सर्वार्थसिद्धिवचनिका पंडित जयचंदजीकृता ॥ पंचम अध्याय ॥ पान ४०३ ॥ ऐसा नाम कह्या है । बहुरि ए अजीव जीवरहित हैं, तातें अजीवकाय कहिये । इहां विशेषणविशेष्यका संबंध है। तातें कर्मधारय समास है। इहां कोई पूछे है, जो, नीला कमल इत्यादिविर्षे विशेषणविशेष्यका योग होते व्यभिचार है। नीलवस्तु औरभी हो है, तातें व्यभिचारके प्रसंगरौं कर्मधारय समास हो है । इहां अजीवकायवि कहा व्यभिचार है ? ताकू कहिये है, अजीवशद है सो कायरहित जो कालद्रव्य ताविषेभी वर्ते है । बहुरि कायसहित जीवभी है, तातें इहां यहु समास बणै है । बहुरि पूछ है, कायशद्ध कौंन अर्थि है ? ताकू कहिये, प्रदेशबहुत्व जनावनेके अर्थि है । धर्मादिक द्रव्यके प्रदेश बहुत हैं । बहुरि कोई पूछे है, आगें सूत्र कहेंगे तामें कह्या है, जो, धर्म अधर्म एकजीव इनके असंख्यातप्रदेश हैं, तिस सूत्रतें प्रदेशबहुत्व जनाये हैं, इस सूत्रों काहेकौं कहैं ताकू कहिये, यह तो सत्य है । परंतु तहां तो प्रदेशनिकी संख्याका नियम जनाया है, जो, इनके प्रदेश असंख्यातही हैं, संख्यात तथा अनंत नाही हैं। अर इहां बहुत्वसामान्य जनावनेकू कायशब्द है । पहले बहुत्व कहे, ताकी संख्या तहां जनाई है । अथवा कालद्रव्यके प्रदेशप्रचयका अभाव जनावनेकू इहां कायशद है। कालद्रव्य आगें कहसी सो बहुप्रदेशी नाही है। जैसैं पुदलपरमाणु एकदेशमात्र SHERPRSHCOOPARGANPAISISAIRAGXFASPARGAGANPEORAGARAANGARPAN For Private and Personal Use Only
SR No.020662
Book TitleSarvarthsiddhi Vachanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychand Pandit
PublisherKallappa Bharmappa Nitve
Publication Year1833
Total Pages824
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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