SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 413
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ सर्वार्थसिद्धिवचनिका पंडित जयचंदजीकृता ॥ चतुर्थ अध्याय ॥ पान ३९५ ॥ याका अर्थ- इहां च शद पहले सूत्रमें कही स्थितिका समुच्चय कर है । तातें ऐसा अर्थ है जो भवनवासी देवनिकीभी जघन्यस्थिति दशहजार वर्षकीही है ऐसें जाननी । आगे व्यंतरदेवनिकी जघन्यस्थिति कहा है? ऐसे पूछे सूत्र कहै हैं ॥ व्यन्तराणां च ॥ ३८॥ याका अर्थ- यहांभी च शब्दकरि पूर्वसूत्रमें कही स्थितिका समुच्चय करै है। तातें व्यंतरदे. पनिकीभी जघन्यस्थिति दशहजार वर्षकी जाननी ॥ आगे व्यंतरदेवनिकी उत्कृष्टस्थिति कहा है ? ऐसे पूछ सूत्र कहै हैं ॥ अपरा पल्योपममधिकम् ॥ ३९॥ चाका अर्थ-व्यंतरदेवनिकी उत्कृष्टस्थिति एक पल्य कळू अधिक है ॥ आगें ज्योतिषी देवनिकी उत्कृष्टस्थिति कहनेयोग्य है ऐसें पूछे सूत्र कहै हैं ॥ज्योतिष्काणां च ॥४०॥ याका अर्थ-- इहां च शब्द है सो पहले सूत्रमें स्थिति कही ताका समुच्चय करै है। तातें * ज्योतिषी देवनिकी आयु साधिक एक पल्यकी है। For Private and Personal Use Only
SR No.020662
Book TitleSarvarthsiddhi Vachanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychand Pandit
PublisherKallappa Bharmappa Nitve
Publication Year1833
Total Pages824
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy