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॥ सर्वार्थसिद्धिवचनिका पंडित जयचंदजीकृता ॥ तृतीय अध्याय ॥पान ३५० ॥
एक घाटि केवलज्ञानके अविभागप्रतिच्छेदन परिमाण उत्कृष्ट अनंतानंतपर्यंत मध्य अनंतानंत जाननां । बहुरि उत्कृष्ट अनंतानंत कहिये हैं। जघन्य अनंतानंत परिमाण शलाका विरलन देय ए तीन राशिकरि अनुक्रमतें पूर्वोक्तप्रकार शलाकात्रय निष्ठापन करै । यो करतें मध्यम अनंतानंत. रूप परिमाण होय । तावि छह राशि मिलावै जीवराशीकै अनंतवै भाग तो सिद्धराशि । बहुरि तातें अनंतगुणां पृथिवी अप तेज वायु प्रत्येक वनस्पति त्रसराशिरहित संसारी जीवराशि मात्र निगोदराशि । बहुरि प्रत्येक वनस्पतिसहित निगोदराशिप्रमाण वनस्पतिराशि । बहुरि जीवराशि” अनंतगुणां पुद्गलराशि । बहुरि यातें अनंतानंतगुणां व्यवहारकालका समयनिका राशि । बहुरि यातें अनंतानंतगुणां अलोकाकाशके प्रदेशनिका राशि । ऐसें छह राशि मिलाये जो परिमाण होय तिह प्रमाण शलाका विरलन देय तीन राशिकरि अनुक्रमतें पूर्वोक्तप्रकार शलाकात्रय निष्ठापन कियै जो मध्य अनंतानंतका भेदरूप परिमाण आवै ताकेविर्षे धर्मद्रव्य अधर्मद्रव्यके अगुरुलघुके अविभागप्रति. च्छेदनका परिमाण अनंतानंत है सो जोडिये । यो करितें जो महापरिमाण होय तिस परिमाण शलाका विरलन देय तीन राशिकरि अनुक्रमतें पूर्वोक्तप्रकार शलाकात्रय निष्ठापन करना । जो कोईशिका | अनंतानंतका भेदरूप महापरिमाण होय तिस परिमाणकू केवलज्ञानके अविभाग
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