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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ सर्वार्थसिद्धिवचनिका पंडित जयचंदजीकृता ॥ तृतीय अध्याय ॥ पान ३४९ ।। भेदरूप भया ताविर्षे च्यारि राशि मिलावणें । वीस कोडाकोडि सागरप्रमाण कल्पकालके समय बढोरे . असंख्यातलोकप्रमाण स्थितिबंधकू कारणभूत कषायनिके स्थान बहुरि तिनितें असंख्यातलोकगुणें अनुभागबंधळू कारण कषायनिके स्थान बहुरि इनितेंभी असंख्यातलोकगुणै मनवचनकाययोगनिकै अविभागप्रतिच्छेद ऐसैं च्यारि राशिपूर्वक परिमाणविर्षे मिलावनें, जो परिमाण होय तिस परिमाण शलाका विरलन देय । ए तीन राशि करनी । तिनिका पूर्वोक्त प्रकार शलाकात्रय निष्ठापन करना । ऐसें करतें जो परिमाण होय सो जघन्य परीतानंत है । बहुरि याकै ऊपरि एक एक वधता एक घाटि उत्कृष्ट परीतानंतपर्यंत मध्यपरीतानंतके भेद जानने । बहुरि एक घाटि जघन्य युक्तानंत परिमाण उत्कृष्टपरीतानंत जाननां । अब जघन्ययुक्तानंत कहिये हैं । जघन्य परीतानंतका विरलनकरि एक एक स्थानविर्षे एक एक जघन्य परीतानंत थापि परस्पर गुणे जो परिमाण होय सो जघन्य युक्तानंत जाननां । सो यहु अभव्यराशीसमान है। बहुरि याकै ऊपरि एक एक वधतां एक घाटि उत्कृष्ट युक्तानंतपर्यंत मध्ययुक्तानंतके भेद जानने । बहुरि एक घाटि जघन्य अनंतानंत परिमाण उत्कृष्ट युक्तानंत जानना। अब जघन्य अनंतानंत कहिये हैं। जघन्य युक्तानंतकुंजवन्य युक्तानंतकार | एकवार गुणे जो परिमाण होय सो जघन्य अनंतानंत है । बहुरि याकै ऊपरि एक एक वधता एक CHERPARIKARAOKGANPARMANCHAMPARINEERARMSUTRAKOONGABADAR # For Private and Personal Use Only
SR No.020662
Book TitleSarvarthsiddhi Vachanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychand Pandit
PublisherKallappa Bharmappa Nitve
Publication Year1833
Total Pages824
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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