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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ सर्वार्थासद्धिवचनिका पंडित जयचंदजीकृता ॥ तृतीय अध्याय ॥ पान ३२६ ॥ धनुष्यका काय है । दोय दिनकै अंतरतें आहार करे है । बहुरि शंखवर्णधवल शरीर है। बहुरि पांच देवकुरुक्षेत्रनिविर्षे सुषमासुपमा सदा अवस्थित है। तहांके मनुष्यनिकी आयु तीनपल्यकी है । छह हजार धनुषकी काय है । तीन दिनके अंतरतें आहार करै है । सुवर्णवर्ण शरीर है ॥ आगें उत्तरदिशाकेनिवि कहा अवस्था है? ऐसे पूछ सूत्र कहे हैं ॥ तथोत्तराः ३०॥ याका अर्थ-- जैसे दक्षिणदिशाकनिविर्षे कहे तैसेही उत्तरदिशाके जानने । हैरण्यवतका तो हैमवतककोनिकै तुल्य है । रम्यकके हविर्षकेनिकै तुल्य है। उत्तरकुरवरका देवकुरवरनिकै समान है । ऐसें जानना ॥ आगें विदेहक्षेत्रनिकेविर्षे कहा स्थिति है? ऐसे पूछे सूत्र कहै हैं-- विदेहेष सङ्ख्येयकालाः ॥ ३१॥ याका अर्थ- पंचमेरुसंबंधी पंचविदेहक्षेत्रनिविर्षे मनुष्यकी आयु संख्यातवर्षकी है। तहां काल सुषमदुःपमाका अंतिसारिखा सदा अवस्थित है । काय पांचसै धनुषका है । नित्य आहार करे है । | उत्कृष्ट आयु एककोडि पूर्वका है । जघन्य आयु अंतर्मुहूर्तका है | तहां पूर्वके परिमाणकी गाथाका | For Private and Personal Use Only
SR No.020662
Book TitleSarvarthsiddhi Vachanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychand Pandit
PublisherKallappa Bharmappa Nitve
Publication Year1833
Total Pages824
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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