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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobetirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ सर्वार्थसिद्धिवचनिका पंडित जयचंद नीता ॥ तृतीय अध्याय ॥ पान ३२४ ॥ निकै भोगोपभोग आयु कायप्रमाणादिक उत्सर्पिणी अवसर्पिीरूप छह काल तिन करि पाईये है ।। तहां अवसर्पिणीकाल छह प्रकार है । सुषमसुषमा । सुषमा । सुषमदुःषमा । दुःषमसुषमा । दुःषमा । अतिदुःषमा ऐसें । बहुरि उत्सर्पिणीभी छह प्रकार है । सो पूर्वोक्त” उलटा गिणनां । तहां अतिदुःषमा । दुःषमा । दुःषमसुषमा । सुषमदुःषमा । सुषमा । सुषमसुषमा ऐसें । इनिका कालका प्रमाण दश दश कोडाकोडि सागर जाननां । इनि दोऊनिकौं भेले कीये कल्पकाल कहिये । तहां सुषमसुपमा च्यारि कोडाकोडि सागरका । तिस कालकी आदिविर्षे मनुष्य उत्तर कुरु भोगभूमिके मनु. प्यनितुल्य होय है । तहांतें अनुक्रमतें घटते घटते सुपमाकाल तीन कोडाकोडि सागरका होय है । तिसकी आदिविर्षे मनुष्य हरिक्षेत्रके मनुष्यनसारिखे होय है । तहांत अनुक्रमतें घटते घटते सुषमदुःषमकाल दोय कोडाकोडि सागरका होय है । तिसकी आदिवि मनुष्य हैमवतक्षेत्रके मनुष्य निकै समान होय है । तहां अनुक्रमतें घटते घटते दुःषमसुषमाकाल बियालीस हजार बरस घाटि | एक कोडाकोडि सागरका होय है । तिसकी आदिवि मनुष्य विदेहक्षेत्रके मनुष्यनिकै तुल्य होय | हैं । तहांत अनुक्रमतें घटतें घटते दुःषमाकाल इकईस हजार वरषका होय है । तहांत अनुक्रमतें घटतें || घटते अतिदुःषमाकाल इकईस हजार वर्षका होय है । ऐसेंही उत्सर्पिणीभी उलटा अनुक्रमरूप जानना।। For Private and Personal Use Only
SR No.020662
Book TitleSarvarthsiddhi Vachanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychand Pandit
PublisherKallappa Bharmappa Nitve
Publication Year1833
Total Pages824
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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