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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ सर्वार्थसिद्धिवचनिका पंडित जयचंदजीकृता ॥ तृतीय अध्याय ॥ पान ३०९॥ दूसरीमें तीन सागर, तीसरीमें सात सागर, चौथीमें दश सागर, पांचमीमें सतरा सागर । छठीमें बाईस सागर, सातमीमैं तेतीस सागर ऐसे हैं ॥ इहां यथाक्रम शदकी तौ ऊपरीतें अनु- 2 वृत्ति है । तिनि भूमिनिविर्षे अनुक्रमकरि यथासंख्य स्थिति लगावणी । तहां रत्नप्रभाविर्षे तो उत्कृष्ट स्थिति एक सागरकी है । शर्कराप्रभाविर्षे तीन सागरकी है । वालुकाप्रभाविर्षे सात सा- || गरकी है । पंकप्रभाविर्षे दश सागरकी है । धूमप्रभाविर्षे सतरा सागरकी है । तमःप्रभावि बाईस | सागरकी है । महातम प्रभाविर्षे तेतीस सागरकी है । ऐसी उत्कृष्टस्थिति है ॥ तिनि भूमिनिविर्षे नारकी जीवनिकी आयु है, भूमीकी स्थिति यहु नांही है ॥ ___ आगे कहै हैं, सातभूमिरूप विस्तारकू धरै अधोलोक तौ कह्या । अब तिर्यक् लोक कह्या | चाहिये । सो तिर्यक् लोक ऐसा नाम कैसे हैं ? जाते स्वयंभूरमण समुद्रपर्यंत असंख्यात तिर्य प्रचयरूप अवस्थित द्वीप समुद्र हैं । तातें तिर्यक् लोक नाम है । इहां पूछ है, ते द्वीप है समुद्र तिर्यक् अवस्थित कौन कौन हैं ? ऐसे पूछे सूत्र कहै हैं-- ॥जम्बूद्वीपलवणोदादयः शुभनामानो द्वीपसमुद्राः॥७॥ याका अर्थ- जम्बूद्वीप लवण समुद्र इनिकू आदि देकरि भले भले जिनके नाम ऐसे द्वीप | For Private and Personal Use Only
SR No.020662
Book TitleSarvarthsiddhi Vachanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychand Pandit
PublisherKallappa Bharmappa Nitve
Publication Year1833
Total Pages824
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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