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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir सर्वार्थसिद्धिवचनिका पंडित जयचंदजीकृता ।। द्वितीय अध्याय ॥ पान २८२॥ औदारिक तौ स्थूल है, यातें सूक्ष्म वैक्रियिक है, यातें सूक्ष्म आहारक है, यातें सूक्ष्म कार्मण है, ऐसें जाननेके अर्थि है ॥ आगे कहै हैं, कि, कोई जानेगा, जो, ये शरीर परे परै सूक्ष्म है , तो प्रदेश कहिये परमाणूभी इनिवि थोरे थोरे हौहिंगे । ऐसी आसंकाकू दूरि करनेकै अर्थि सूत्र कहै हैं-- ॥प्रदेशतोऽसङ्ख्येयगुणं प्राक् तैजसात् ॥ ३८॥ __याका अर्थ-- तेजसतै पहले पहले शरीर औदारिकतें लगाय आहारकताईविर्षे परमाणु असंख्यात असंख्यात गुणे हैं । प्रदेश नाम परमाणूका है । बहुरि संख्यातूं अतीत होय ते असंख्यात हैं। सो जहां असंख्यातका गुणाकार होय ताळू असंख्येयगुणां कहिये । सो इहां परमाणनितें असंख्यातगुणां कहना, अवगाहना न लेनी । बहुरि परं परं इस शदकी पहले सूत्रतें अनुवृत्ति लेणी । बहुरि कार्मणतांईके निषेधकै अर्थि प्राक् तैजसात् ऐसा कह्या। तातें ऐसा अर्थ भया, जो, औदारिकके परमाणूनितें तौ असंख्यातगुणे परमाणू वैक्रियिकवि बहुरि वैक्रियिकतें असंख्यातगुणें आहारकविर्षे है । इहां कोई पूछे, असंख्यातके भेद असंख्यात हैं तहां गुणाकार कैसा असंख्यातका लेनां ? ताका समाधान, इहां पल्योपमका असंख्यातवा भागका गुणाकार लेना ॥ फेरि कोई पूछ है, जो, eritsaritratertaitertopicertisertiserialisha For Private and Personal Use Only
SR No.020662
Book TitleSarvarthsiddhi Vachanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychand Pandit
PublisherKallappa Bharmappa Nitve
Publication Year1833
Total Pages824
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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