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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobetirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ सर्वार्थसिद्धिवचनिका पंडित जयचंदजीकृता ॥ प्रथम अध्याय ॥ पान १७४ ॥ లండనులయerఉదంతం కలకలండనులందరూ यह अवधि हीयमान जाननां । बहुरि जो सम्यग्दर्शनादिगुणका अवस्थानतें जिस परिणामकू लीये उपज्या तेताही रहै पर्यायके अंतताई तथा केवलज्ञान उपजै तहांतांई घटै वधै नांही, जैसे पुरुषके | कोई तिला आदिका चिन्ह जैसा है तैसाका तैसाही रहै, तैसें यह अवधि अवस्थित जाननां । बहुरि जो सम्यग्दर्शनादि गुणके घटने वधनेके योगते जितने परिमाणकू लीये उपजै ताते वधेभी घटैभी जैसे पवनके वेगकरि प्रेन्या जलका लहरी घटै वधै, तैसें यह अवधि अनवस्थित कहिये । ऐसे यह अवधि छह प्रकार हो है ॥ बहुरि श्लोकवार्तिकमैं याका ऐसा व्याख्यान है- जो अवधिज्ञानावरण क्षयोपशम तो अंतरंग कारण है । सो दोऊ प्रकारकी अवधिमें पाईये है। याविना तो अवधिज्ञान उपजैही नांही। तातें यहां बाह्यनिमित्त अपेक्षा कथन कीजिये। तब भवप्रत्ययकू तो प्रधानकारण भवही है । बहुरि | यह क्षयोपशमनिमित्तक कह्या ताळू गुणप्रत्ययभी कहिये। तहां क्षयोपशमशब्दकरि चारित्रमोहके क्षयतें भया जो क्षायिकचारित्र बहुरि चारित्रमोहके उपशमतें भया उपशमचास्त्रि, बहुरि दोऊतें । भया क्षयोपशमचारित्र यामैं संयमासंयमभी आय गया। ऐसे तीन प्रकार चारित्र नामा गुण जो बाह्यनिमित्त तातें उपजै सो क्षयोपशमनिमित्तक कहिये । ऐसा व्याख्यान है । बहुरि आगमविर्षे For Private and Personal Use Only
SR No.020662
Book TitleSarvarthsiddhi Vachanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychand Pandit
PublisherKallappa Bharmappa Nitve
Publication Year1833
Total Pages824
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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