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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kalassagarsuri Gyanmandir ॥ सर्वार्थसिद्धिवचनिका पंडित जयचंदजीकृता ॥ प्रथम अध्याय ॥ पान १३३ ॥ efferase न रहैगी । व्याप्तिका ज्ञान प्रत्यक्ष अनुमानतें नाहीं होयगा । स्मृति प्रत्यभिज्ञान तर्क ए प्रत्यक्ष अनुमानमें गर्भित न होयगा । बहुरि श्रुत कहिये आगमप्रमाण है । सो आप्तके शब्दके श्रवणते होय है । सो यहभी प्रत्यक्ष अनुमानमें गर्भित न होयगा तब तीन प्रमाण होयगा । बहुरि शब्द तथा उपमानसहित च्यारि प्रमाण मानै है तथा अर्थापत्तिसहित पांच तथा अभावसहित छह मानै है। तिनकै स्मृति प्रत्यभिज्ञान तर्क ये तिनिमें गर्भित न होयगे तव संख्या वधि जायगी। तातें तिनिकी संख्याका नियम नहीं ठहरे है । तातै प्रत्यक्ष परोक्ष ए दोय संख्यामें सर्व भेद गर्भित होय | हैं । तातें यह नियम निर्वाध है । ___ आगै, कहे जे पंचप्रकार ज्ञान ते दोय प्रमाणविर्षे गर्भित कीये तथा दोयकी संख्या अन्यप्रका. रभी आवे है । तातें ताकी निवृत्तीकै अर्थि सूत्र कहै हैं । ॥ आद्ये परोक्षम् ॥ ११॥ याका अर्थ-पांच ज्ञाननिविर्षे आयके दोय मतिश्रुतज्ञान परोक्ष प्रमाण है । आदि शब्द है सो प्रथमका वचन है । जाते आदिविर्षे होय ताकों आद्य कहिये । इहां कोई पूछे | आये ' ऐसा द्विवचन है तहां मति श्रुत दोय आये । तहां आदि तो एक मति है । दूसरा నుండirederation, For Private and Personal Use Only
SR No.020662
Book TitleSarvarthsiddhi Vachanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychand Pandit
PublisherKallappa Bharmappa Nitve
Publication Year1833
Total Pages824
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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