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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ सर्वार्थसिद्धिवचनिका पंडित जयचंदजीकृता ॥ प्रथम अध्याय || पान ११८ | है |तिति संख्यातगुणां क्षपकश्रेणीवाला है । तिनितें संख्यातगुणां अप्रमत्तसंयत है । तिनितें संख्यातगुणां प्रमत्तसंयत है । केवलज्ञानीनिविषै अयोगकेवलीनितैं संख्यातगुणां सयोगकेवली है | संयम के अनुवादकर सामयिकच्छेदोपस्थापन शुद्धसंयतनिविषै दोऊ उपशम श्रेणीवाला तुल्य संख्या है । तिनि संख्यातगुणां क्षपक श्रेणीवाला है । तिनितें संख्यातगुणां अप्रमत्तसंयत है । तिनि संख्यातगुणां प्रमत्तसंयत है । परिहारविशुद्धिसंयतनिविषै अप्रमत्तनितैं संख्यातगुणां प्रमत्तसंयत है। सूक्ष्म पराय शुद्धसंयमीनिविषै उपशमश्रेणीवालानितें क्षपकश्रेणीवाला संख्यातगुणां है | यथाख्यातविहारशुद्ध संयतनिविषै उपशांतकषायनितें क्षीणकषायवाले संख्यातगुणां है । अयोगकेवली तितनेंही है। तिनितैं संख्यातगुणां सयोग केवली है । संयतासंयतनिविषै गुणस्थान एकही तातैं अल्पबहुत्व नांही | असंयतनिविषै सर्वतैं स्तोक सासादनसम्यग्दृष्टि है । तिनितें संख्यातगुणां सम्यग्मिथ्यादृष्टि है । तिनितें असंयतसम्यग्दृष्टि असंख्यातगुणां है । तिनितें अनंतगुणां मिथ्यादृष्टि है | दर्शन के अनुवादकर चक्षुर्दर्शनवाले निकै मनोयोगीवत् है । अचक्षुर्दर्शनवालेनिकै काययोगीवत् है । अवधिदर्शन वालेनिकै अवधिज्ञानीवत् है । केवलदर्शनवाले निकै केवलज्ञानीवत् है ॥ लेश्या के अनुवादकरि कृष्णनीलकापोतलेश्या वाले निकै असंयतवत् है । पीतपद्मलेश्यावालेनि कै For Private and Personal Use Only
SR No.020662
Book TitleSarvarthsiddhi Vachanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychand Pandit
PublisherKallappa Bharmappa Nitve
Publication Year1833
Total Pages824
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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