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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kalassagarsuri Gyanmandir ॥ सर्वार्थसिद्धिवचनिका पंडित जयचंदजीकृता ॥ प्रथम अध्याय ॥ पान ११७ ॥ योगके अनुवादकरि वचनमनयोगीनिकै पंचेंद्रियवत् काययोगीनिकै गुणस्थानवत् अल्पबहुत है ।। वेदके अनुवादकरि स्त्रीपुरुषवेदीनिकै पंचेंद्रियवत् । नपुंसकवेदीनिकै अर वेदरहितनिकै गुणस्थानवत् अल्पबहुत्व है ।। कषायके अनुवादकरि क्रोधमानमायाकषायवालेनिकै पुरुषवेदवत् । विशेष यहु जो मिथ्यादृष्टि अंनंतगुणा है। लोभकषायवालेनिकै दोय उपशमश्रेणीवाला तुल्यसंख्या है। अर क्षपक श्रेणीवाला तिनित संख्यातगुणां है। सूक्ष्मसांपराय शुद्धमंयत उपशमश्रेणीवाला विशेषकरि अधिक है । तिनितें सूक्ष्मसांपराय क्षपकश्रेणीवाला संख्यातगुणां है । अवशेषनिकै गुणस्थानयत् है ।। ज्ञानके अनुवादकरि मतिअज्ञान श्रुतअज्ञानवालेनिविर्षे सर्वते स्तोक सासादनसम्यग्दृष्टि है। तिनितें अनंतगुणां मिथ्यादृष्टि है । विभंगज्ञानीनिविणे सर्वतें थोरा सामादनसम्यग्दृष्टि है । तिनितें असंख्यातगुणां मिथ्यादृष्टि है। मतिश्रुतअवधिज्ञानीनिविर्षे सर्वतें स्तोक च्यारि उपशमश्रेणीवाला है । तिनितें संख्यातगुणां क्षपक श्रेणीवाला है। तिनितें संख्यातगुणां अप्रमत्तसंयत है। तिनितें संख्यातगुणां प्रमत्तसंयत है । तिनितें असंख्यातगुणां संयतासंयत है। तिनितें | असंख्यातगुणां असंयतसम्यग्दृष्टि है । मनःपर्ययज्ञानीनिवि सर्वते स्तोक च्यारि उपशमश्रेणीवाला aateeritsaptocritamperiasisxerespectivecitsapnerikl2s For Private and Personal Use Only
SR No.020662
Book TitleSarvarthsiddhi Vachanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychand Pandit
PublisherKallappa Bharmappa Nitve
Publication Year1833
Total Pages824
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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