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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ सर्वार्थसिद्धिवचनिका पंडित जयचंदजीकृता || प्रथम अध्याय ॥ पान १११ ॥ तौ पोपमका असंख्यातवा भाग अर अंतर्मुहूर्त है । उत्कृष्ट अंगुलका असंख्यातवा भाग आकाशके प्रदेश जेते हैं तेते समय हैं । ते असंख्याता संख्यात उत्सर्पिणी अवमर्पिणी काल है । असंयतसम्यग्दृष्टि आदि अप्रमत्तगुणस्थानपर्यंत नानाजीवकी अपेक्षा अंतर नही है | एकजीव अपेक्षा जघन्य तौ अंतर्मुहूर्त है । उत्कृष्ट अंगुलका असंख्यातवा भाग है । ते असंख्याता संख्यात उत्सर्पिणी अवसर्पिणी के समयप्रमाण हैं । च्यारि उपशमश्रेणीवालानिका नानाजीवकी अपेक्षा गुणस्थानवत अंतर है | एकजीव अपेक्षा जघन्य तौ अंतर्मुहूर्त है । उत्कृष्ट अंगुलका असंख्यातवा भाग है । सो असंख्याता संख्यात उत्सर्पिणी अवसर्पिणीके समयप्रमाण है । च्यारि क्षपकश्रेणीवानिका अर सयोगकेवलीनिका गुणस्थानवत् अंतर है । अनाहारकनिविषै मिथ्यादृष्टिका नानाजीव अपेक्षा एकजीव अपेक्षा अंतर नांही है । सासादनसम्यग्दृष्टीका नानाजीव की अपेक्षा जवन्य तौ एकसमय है । उत्कृष्ट पल्यकै असंख्यातवें भाग है । एकजीव अपेक्षा अंतर नही है । सम्यग्दृष्टिका नानाजीव अपेक्षा जघन्य एकसमय है । उत्कृष्ट पृक्त महीना है । एकजीव अपेक्षा अंतर नांही है । सयोगकेवलीका नानाजीवकी अपेक्षा जघन्य तौ एकसमय है । उत्कृष्ट वर्ष है । एकजीव अपेक्षा अंतर नांही है । ऐसें अंतरका निश्चय कीया ॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020662
Book TitleSarvarthsiddhi Vachanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychand Pandit
PublisherKallappa Bharmappa Nitve
Publication Year1833
Total Pages824
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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