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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobetirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ सर्वार्थसिद्धिवचनिका पंडित जयचंदजीकृता । प्रथम अध्याप ॥ पान ११० ॥ एकजीव अपेक्षा अंतर नांही है। सासादनसम्यग्दृष्टि मिथ्यादृष्टिका नानाजीव अपेक्षा जघन्य तौ एकसमय है । उत्कृष्ट पल्यकै असंख्यातवें भाग है । एकजीव अपेक्षा अंतर नांही है। मिथ्यादृष्टिका नानाजीव अपेक्षा अर एकजीव अपेक्षा अंतर नांही है ॥ मंजीके अनुवादकरि संज्ञीनिविर्षे मिथ्यादृष्टिका गुणस्थानवत् अंतर है। सासादनमम्यग्दृष्टि सम्यग्मिथ्यादृष्टिका नानाजीव अपेक्षा गुणस्थानवत् अंतर है । एकजीव अपेक्षा जघन्य तौ पल्यका अमंख्यातवा भाग अर अंतर्मुहूर्त है । उत्कृष्ट पृथक्त्व सौ सागर है । असंयत सम्यग्दृष्टि आदि अप्रमत्तताई नानाजीव अपेक्षा अंतर नांही है। एकजीव अपेक्षा जघन्य तौ अंतर्मुहूर्त है । उत्कृष्ट पृथक्त्व सौ सागर है । च्यारि उपशमश्रेणीवालेनिका नानांजीव अपेक्षा गुणस्थानवत् अंतर है। एकजीव अपेक्षा जघन्य तौ अंतर्मुहूर्त है । उत्कृष्ट पृथक्त्व सौ सागर है। च्यारि क्षपक श्रेणीवालेनिका गुणस्थानवत् अंतर है। असंज्ञीके नानाजीव अपेक्षा एकजीव अपेक्षा अंतर नांही है । दोऊ नामकरि रहितनिका गुणस्थानवत् अंतर है ।। आहारके अनुवादकरि आहारकनिवि मिथ्यादृष्टिका गुणस्थानवत् अंतर है। सासादन| सम्यग्दृष्टि-सम्यग्मिथ्यादृष्टिका नानाजीव अपेक्षा गुणस्थानवत् अंतर है । एकजीव अपेक्षा जघन्य For Private and Personal Use Only
SR No.020662
Book TitleSarvarthsiddhi Vachanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychand Pandit
PublisherKallappa Bharmappa Nitve
Publication Year1833
Total Pages824
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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