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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ५० ) २ तप्पुरिस समास-इस समास में उत्तरपद प्रधान होता है। इसका पूर्वपद प्रायः विशेषण एवं उत्तरपद प्रायः विशेष्य होता हैं। किन्तु इसके लिंग एवं वचन उत्तरपद के अनुसार होते हैं। जैसे-राइणो पुरिसो में उत्तरपद पुरिसो की प्रधानता है। इसका रूप बनेगा-रायपुरिसो। तत्पुरुष समास दो प्रकार का है :-(१) बहिकरण (=व्यधिकरण) तत्पुरुष-समास एवं (२) समाणाहिकरण (=समानाधिकरण) तत्पुरुष-समास । (१) बहिकरण तत्पुरुष समास-इस समास को सामान्य तत्पुरुष समास भी कहा जाता है। इसमें दोनों पद विभिन्न विभक्तियों वाले होते हैं। इसमें पूर्वपद द्वितीया, तृतीया आदि विभक्तियों वाला होता है और उत्तरपद प्रथमा-विभक्ति वाला होता है। - पूर्वपद की विभिन्न विभक्तियों के आधार पर इस समास को ६ भेदों में विभक्त किया गया है :... (प्र) बोया ( द्वितीया ) तत्पुरुष (अर्थात द्वितीयान्त एवं प्रथमान्त)-समास-इसमें सिप, अतीअ, पडिअ, ग, पत्त एवं प्रावण्ण शब्दों के प्रसंग में द्वितीया विभक्ति के रहने के कारण द्वितीया तत्पुरुष-समास होता है । जैसे :किसणं सिओ= किसणसियो । कृष्ण के सहारे ); आसां अतीयोपासासीओ (आशा से अधिक); अग्गि पडिप्रो= अग्गिडिअो ( अग्नि में गिरा हुआ ), दिवं गो=दिवगयो ( मृत्यु को प्राप्त ), सुहं पत्तोसुहपत्तो (सुख-प्राप्त) कट्ठ प्रावण्णो = कट्ठावण्णो ( कष्ट को प्राप्त )। For Private and Personal Use Only
SR No.020659
Book TitleSaral Prakrit Vyakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajaram Jain
PublisherPrachya Bharati Prakashan
Publication Year1990
Total Pages94
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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