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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ४६ ) (३) समृद्धि-अर्थ में, जैसे मद्दाणं समिद्धि =सुमद्द ( मद्र-देश की समृद्धि ) . (४) अभाव-अर्थ में, जैसे__ मच्छिमाणं अहावो =णिम्मच्छिग्रं ( मक्खियों का अभाव) (५) अत्यय ( विनाश )-अर्थ में, जैसे-......... हिमस्स अच्चमो-अइहिमं ( जाड़े की समाप्ति ) . (६) असम्प्रति ( अनौचित्य ) अर्थ में, जैसेणिद्दा संपइ ण जुज्जइ=अइणिई (निद्रा के अनुपयुक्त काल में). (७) पश्चात् अर्थ में, जैसे भोयणस्स पच्छा=अणुभोयणं (भोजन के बाद) . (८) यथाभाव अर्थ में, ( = योग्यता, अनतिक्रम्य एवं वीप्सा अर्थात् द्विरुक्ति के अर्थ में ) जैसे :(क) योग्यता अर्थ में-रूवस्स जोग्गं अणुजोग्गं (रूप के योग्य) (ख) अनतिक्रम्य अर्थ में-सत्ति अणक्कमिऊण जहासत्ति (शक्ति के अनुसार) (ग) द्विरुक्ति अर्थ में--दिणं दिणं पइ-पइदिणं (प्रतिदिन) (६) आनुपूर्व्य (क्रम) अर्थ में, जैसे जेट्ठस्स अणुपुब्वेण-अणुजे? (ज्येष्ठ के क्रम में) (१०) यौगपद्य (एक साथ) अर्थ में, जैसे ... चक्केण जुगवं सचक्क (चक्र के साथ-साथ) (११) सम्पत्ति के अर्थ में, जैसे छत्ताणं संपइसछां (क्षत्रियों की सम्पत्ति) For Private and Personal Use Only
SR No.020659
Book TitleSaral Prakrit Vyakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajaram Jain
PublisherPrachya Bharati Prakashan
Publication Year1990
Total Pages94
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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