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( ४५ ) लक्खणो रामेण समं गच्छइ (लक्ष्मण राम के साथ जाता है)
" , साअं , ( , , , ,)।
(ख) जिस विकृत अंग के द्वारा अंगी में विकार ज्ञात हो, उस अंग में तृतीया विभक्ति होती है जैसे :__ पाएण खंजो (=पर से लंगड़ा)।
कण्णेण बहिरो (=कान से बहिरा) (ग) जिस हेतु (प्रयोजन) से कोई कार्य जाना जाय, उसमें तृतीया विभक्ति होती है। जैसे :
दंडेण घडो जागो (=डंडे के कारण घड़ा उत्पन्न हुआ)। (४) सम्प्रदान-सम्बन्ध कारक
किसी के लिए क्रिया की जाय या वस्तु के दान देने के कारण कर्ता जिसे सन्तुष्ट करता है, उसे सम्प्रदान-सम्बन्ध कारक कहते हैं। इसमें चतुर्थी अथवा षष्ठी विभक्ति होती है। जैसे:-विप्पाय विप्पस्स वा गावं देइब्राह्मण के लिए गाय दान में देता है। अन्य नियम
(क) रुचि अर्थ में। जैसे :- हरिणो रोयइ भक्ति= हरि के लिए भक्ति अच्छी लगती है।
(ख) 'कर्ज लेना' धातु के योग में ऋण देने वाले में । जैसे-भत्ताय भत्तस्स वा धरइ मोक्खं हरि-हरि भक्त के लिए मोक्ष धारण करता है। (ग) क्रोध एवं ईर्ष्या के अर्थ में, जैसे :
हरिणो कुज्झइ=हरि के ऊपर क्रोध करता है।
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