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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ११ ) जैसे :-संयुक्त 'न्म' के स्थान में 'म्म'। यथा- ... जन्मः जम्मो। मन्मथः मम्महो। (१७) संयुक्त श्म, ष्म, स्म एवं ह्म के स्थान में 'म्ह' । यथा काश्मीरः=कम्हारो। ग्रीष्मः=गिम्हो । अस्माहशः प्रम्हारिसो। * ब्रह्मा=बम्हा। ब्राह्मणः=बम्हणो। (१८) शील (स्वभाव, आदत) धर्म (गुण) एवं साधु (निपुण) अर्थ में जो प्रत्यय आते हैं, उनके स्थान में 'इर' आदेश होता है। हसणशीलः=ह सिरो। लज्जाशीलः लज्जिरो। भ्रमणशीलः= भमिरो। (१६) 'क्त्वा' प्रत्यय के स्थान में तुम्, अत्, तूण एवं तुप्राण - आदेश होते हैं। यथा क्त्वा तुम्-दग्ध्वा-दद्ध; मुक्त्वा = मोत्त क्त्वा = अत्-भ्रमित्वा-भमित्र । क्त्वा-तूण-ग्रहीत्वा-घेत्त ण । कृत्वा-काऊण क्त्वा तुआण-भुक्त्वा-भोत्त प्राण. . .. (२०) मतुप् प्रत्यय के स्थान में पालु, इल्ल, उल्ल, पाल, वंत, मंत एवं इत्त आदेश होते हैं। यथा : ईर्ष्यावान् = ईसालु । निद्रावान् =णिद्दालु शोभावान् =सोहिल्लो। विकारवान् =विभारिल्लो। विकारवान् = विप्रारुल्लो । . रसवान् = रसालो । ज्योत्स्नावान् =जोण्हालो । For Private and Personal Use Only
SR No.020659
Book TitleSaral Prakrit Vyakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajaram Jain
PublisherPrachya Bharati Prakashan
Publication Year1990
Total Pages94
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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