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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १. स्वर-स्वनि-परिवर्तन- . . (१) आचार्य हेमचन्द्र द्वारा लिखित प्राकृत -व्याकरण के नियमानुसार प्राकृत-भाषा में ऋ, ऐ, औ, तथा अः को छोड़ कर शेष स्वर वही होते हैं, जो कि संस्कृत में। प्राकृत-भाषा में ऋ के स्थान पर रि, अ, इ तथा उ वर्णों का प्रयोग होता है। जैसेऋ = रि - ऋषिः . = रिसि, अ - मृतः = मनो, मियो मृग. = मियो, मित्रो, मो. ऋतु: = उउ, = अइ - कैलाशः = कइलासो, , = केलासो रौरवः = रउरवो, , , - गौरवः = गउरवो " , - कौरवः = कउरवो , ओ – यौवनम् = जोव्वणं, (२) कहीं-कहीं शब्द के प्रारम्भ में ह्रस्व 'अ' का लोप हो जाता है । जैसे - अरण्यम् = रण्णं । इदानीम् = दाणिं (३) ह्रस्व-स्वर, दीर्घ-स्वरों में बदल जाता है। जैसे दुश्शासनः = दूसासणो। पश्यति = पस्सइ प्रश्वः . = प्रासो। . वर्षः = वासो सिंहः = सीहो। प्रकटः = पायडो विश्रामः = वीसामो. For Private and Personal Use Only
SR No.020659
Book TitleSaral Prakrit Vyakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajaram Jain
PublisherPrachya Bharati Prakashan
Publication Year1990
Total Pages94
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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