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१. स्वर-स्वनि-परिवर्तन- . . (१) आचार्य हेमचन्द्र द्वारा लिखित प्राकृत -व्याकरण के
नियमानुसार प्राकृत-भाषा में ऋ, ऐ, औ, तथा अः को छोड़ कर शेष स्वर वही होते हैं, जो कि संस्कृत में। प्राकृत-भाषा में ऋ के स्थान पर रि, अ, इ तथा उ वर्णों का प्रयोग होता है। जैसेऋ = रि - ऋषिः . = रिसि, अ - मृतः = मनो, मियो
मृग. = मियो, मित्रो, मो.
ऋतु: = उउ, = अइ - कैलाशः = कइलासो,
, = केलासो
रौरवः = रउरवो, , , - गौरवः = गउरवो " , - कौरवः = कउरवो
, ओ – यौवनम् = जोव्वणं, (२) कहीं-कहीं शब्द के प्रारम्भ में ह्रस्व 'अ' का लोप हो जाता है । जैसे -
अरण्यम् = रण्णं । इदानीम् = दाणिं (३) ह्रस्व-स्वर, दीर्घ-स्वरों में बदल जाता है। जैसे
दुश्शासनः = दूसासणो। पश्यति = पस्सइ प्रश्वः . = प्रासो। . वर्षः = वासो सिंहः = सीहो। प्रकटः = पायडो विश्रामः = वीसामो.
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