SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 266
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ૨૪૦ श्रीसप्तपदीशास्त्र - गुजराती भाषानुवाद. उपधान कहेला छे ते आवश्यकसूत्रना उपधान नथी. माटे उपधान विना श्री आवश्यकसूत्रनुं भणवं अने श्री आवश्यकसूत्रनीक्रियाकरवी ते योग्य नथी. २३६. श्री आवश्यक सूत्रमां धर्मराजाना हस्तीस्कंघसरखो एक श्रुतस्कंध ले अने बळी एकसरगवाळा तेनाज छ अध्ययनो छे. २३७. ते आवश्यकसूत्रना छए अध्ययनना उद्देश, समुद्देश अने अनुज्ञानीक्रिया छ दिवसमा थाय छे अने सातमे दिवसे श्री आवश्यक सूत्रना श्रुतस्कंधनो समुद्देश करवो. २३८. अने आठमां दिवसे श्री श्रुतस्कंधनी अनुज्ञासंबंधी क्रियाकरवी एवीरीते श्रीआवश्यक सूत्रना आठ दिवसना उपधान साधु तथा श्रावकने सरखा का छे. २३९. कारण के श्रीजिनागममां श्रीजिनेश्वरदेate साधु तथा श्रावकोने अन्तेवासी, उग्रा अने उग्रविहारी शब्दोएकरी परुपया छे. २४० तथा श्रीसातमोअंग उपाशकदशांग पांचमोअंग श्रीभगवती सूत्र अने श्रीआचारांग - सूत्र ने विषे पासत्थादिक पण साधु, श्रावक बन्नेने ' वसुवा अणुवसुवा' विगेरे शब्दोथी सरखा कह्याछे, एपण विचारो. २४१. ' हे आर्यो !' आवा आमन्त्रणेकरी गुरुए साधु तथा श्रावक बन्नेने एक शब्दे आमंत्रण करेल हे. साधुओना पाछल चाळनारा तेथी देशयतनावाळा एवा श्रावको छे एम तमे जाणो ! २४२. वळी श्रावकना उपधाननो विधि जे श्रीमहानिशीथसूत्रमां कहेल छे, ते कोइक मानेछे अने कोइक घणा नथी मानता. २४३. श्री आवश्यक सूत्र संबंधी आठ For Private And Personal Use Only
SR No.020656
Book TitleSaptapadi Shastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarchandrasuri
PublisherMandal Sangh
Publication Year1940
Total Pages291
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy