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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आचार्यश्री भ्रातृचंद्रसूरि प्रभ्थमाला पुस्तक ५३ मुं २३९ उद्देश, समुद्देशादि प्रवर्तेछे अने अंगबाह्यसूत्रना पण उद्देश, समुद्देशादि प्रवर्ते छे. जो अंगबाहिरसूत्रना उद्देश समुद्देशादि प्रवर्ते छे, तो भुं आवश्यक सूचना उद्देश, समुद्देशादि मवर्त छे ? के आवश्यकसूत्री जूदाना उद्देश, समुद्देशादि प्रवर्ते छे ? आवश्यक सूचना पण प्रवर्ते छे अने आवश्यक सूत्रथी जूदा सूचना पण प्रवर्ते छे. जो आवश्यक सूत्रना उद्देश. समुद्देशादि प्रवर्ते छे, तो शुं सामायिकना, चउविसत्थाना, वंदनना पडिकमणाना, काउस्सग्गना अने पच्चख्खाणना उद्देश, समुद्देशादि प्रवर्ते हे ? उत्तरः- ए सर्व छए आवश्यकोना उद्देश, समुद्देश, अनुज्ञा अने अनुयोग प्रबछे " आवुं सूत्रवचन होवाथी आवश्यकना उद्देश, समुद्देश अने अनुज्ञाविना सूत्र भणाय नहीं. उद्देश, समुद्देशादिना अर्थ आ प्रमाणे छे:आ अध्ययनादिक तमारे भणवु, आवुं जे गुरु वचन, ते उद्देश, ते अध्ययनादि सारीरीतेभणीने श्रीगुरुने संभळावे त्यारे गुरुकहे एम स्थिर परिचय करो ! आवुं जे गुरुवचन ते समुद्देश अने ते प्रमाणेकरी गुरुने निवेदनकरे त्यारे गुरु कहे के रुडीरीते वारणकरो अने बीजाने पण भणावो आबुं गुरु वचन ते अनुज्ञा कहेवाय छे गुरुना उपदेशनी प्राये अपेक्षा राखनार श्रुतज्ञान छे. आ बीना विशेषे श्रीअनुयोगद्वारवृत्तिमां छे. एम सूत्रना अनुसारे साधुओं तथा श्रावकोने आवश्यकनीक्रिया सरखी छे अने ते आवश्यक सूत्रना उपधान पण सरखा है. २३५, अने श्रीमहानिशीथ सूत्रमां जे For Private And Personal Use Only
SR No.020656
Book TitleSaptapadi Shastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarchandrasuri
PublisherMandal Sangh
Publication Year1940
Total Pages291
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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