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माचार्यश्रीभ्रातृचंद्रसूरि ग्रन्थमाला पुस्तक ५३ मुं. २१९
आपणने क्या जोड्या छे. ८, गुरुए बतावेल कार्यनी जेम हानि न थाय तेम उद्यम करे, तप करवामां छ मासथी लइ यावत् पोरसी नवकारसो सुधी सरल भावनाए चिन्तवे. ९. पछी आटलं तप करवाने हुं समर्थ छु एम हृदयमां निश्चय करीने गुरुने वांदणा दइने गुरु समीपे जे चिन्तवेल तेज नवकारसी. पोरसी विगेरे ग्रहण करे. १०” जेवो प्रतिक्रमणनो विधि उपर बतावेल ग्रन्थोमां कहेल छे तेवोज आवश्यक बृहद् वृत्तिमां जणावेल छे. १५३. तेवोज आवश्यक चूणिमां वखाणेल छे. तथा श्री हरिभद्रमरिकृत पंच वस्तुक ग्रन्थमा:-" आचरणाए श्रुतदेवी विगेरेनो काउसम्म छे, वळी कोइक चोमासीमां, संवच्छरीमा क्षेत्र देवतानो काउस्सग्ग अने पख्खीमां शय्यामुरी-भवनदेवीनो अने कोइक चोमासीमां पण काउस्सग्ग करे छे. ४९२” आq वचन तेमां होवाथी. परंतु आचरणाए पण देवसिअ प्रतिक्रमणमां श्रुतदेवी तथा खेत्रदेवीनो काउस्सग्ग सूत्र, वृत्ति अने चूर्णिमा बतावेल नथी. १५४. पख्खीमां, चोमासीमां अने संवच्छरीमां देवीनो काउस्सग्ग कोइकज करे छे, एम कहेल छे. आवा विधिवादो सर्वने मान्य छे एम कहेल नथी. १५५. आचरणाए करेल होय, तेने न करवाथी आणाभंगनो दोष नथी, आचरणाने अन्योन्य-देखादेखी कोइ करे अने कोइ न करे. १५६. सर्वांनी पोतपोतानी गच्छाचरणा भिन्न भिन्न होवा छतां पण अने जुदी जुदी रीते कराती छतां कोइथी
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