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श्री सप्तपदीशास्त्र - गुजराती भाषानुषाद.
लाने दृष्टिथी जो प्रमार्जना करे. ९१. जो के उपदेश मालादिकमांत्रण काल मांडला लखेला है, अने हाल सर्वसाधुओ ते छ करता देखाय ले. प्रादोषिक- अर्द्धरात्रिक दक्षिण- उत्तरमां अने वैरात्रिक- प्राभातिक पूर्व-पश्चिममां एम त्रण त्रण मांडला लखेला होवाथी छ थाय छे. पछी काळवेलाए पूर्वोक्त विधि प्रमाणे इरियावहि पडिक्कमीने श्रीजिनप्रतिमाओने वंदन करी गोचर चरियादिनो वोस करे. ९२. त्यारपछी एक एक मासमण आपीने आचार्य, उपाध्याय अने साधुओने थोभवंदनाए वंदन करे. त्यारपछी “ देवसियं पडिक्कमणं ठावेमि " एम बोलीने उभा थका हाथमां ग्रहण करेल छे रजोहरण जेमणे अने स्वीकारेल हे योगमुद्रा जेमणे एवा उत्सर्ग - कायोत्सर्गसूत्रोने बोले. ९३, ९४. हवे प्रतिक्रमणनो विधि सूत्र, नियुक्ति प्रमुख ग्रन्थोमां कहेल छे ते लखिए छीएश्री उत्तराध्ययन सूत्रना छवीसमां अध्ययननी गाथा ३८ थी ४२ सुधीमां विधि बतावेल छे. वळी श्री भद्रबाहु स्वामिकृत आवश्यक नियुक्तियां पांचमां अध्ययननी छ गाथाओमां पण एज विधि बतावेल छे. वळी श्री आवश्यक सूत्रनी बृहद् वृत्तिमां तथा आवश्यक चूर्णिमां विस्तारथी एज विधि बता - वेल छे. वळी श्री हरिभद्रसूरिकृत 'पंच वस्तुक ग्रन्थनी अंदर आ प्रकारे विधि बतावेल छे:- गाथा- ४४२ थी ४९० पर्यन्त लखेल छे अने तेमां विस्तारथी एज विधि बतावेल छे. विस्तारना भयथी तेनो अर्थ करेल नथी. जोवानी इच्छा
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