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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आचार्यश्रीभ्रातृचंद्रसूरि ग्रन्थमाला पुस्तक ५३ मुं १९७ www.rrrrrrrrrrr आवश्यक नियुक्तिमां कहेल छ के-बाहेर क्षेत्रमा रहेल आज्ञा लइ अवग्रहमा प्रवेश करे, प्रवेश करी ज्यां सुघी अवग्रह खेत्रमा रहे त्यांसुधी मस्तके करी चरण फरसे, आवं वचन होवाथी, बीजे बांदणे उभु थq नही. गुरु चरण स्पर्शविना अवग्रहमां पण जे साधु उभो रहे, ते साधुने निश्चे गुरुनी आशातना थाय. ८४. श्रीदशाश्रुतस्कंध मूलसूत्रमा विस्तारपूर्वक तेत्रीस गुरु अशातना कहेली छे. बीजा सूत्रोमां पण बतावेल छे. ते दरेकना नाम आ प्रमाणे-श्री आवश्यक सूचना त्रिजा अध्ययनमा तेमज वळी तेनाज चोथा अध्ययनमां, तथा त्रिजा श्रीठाणांगसूत्र, चोथा श्रीसमवायांगसूत्र अने दशमां श्रीप्रश्नव्याकरण अंगसूत्रमा संक्षेपथी उपर प्रमाणे कहेल छे. ८५, ८६. प्रवचनमा बतावेल विधि क्रम प्रमाणे बीजं वांदणुं गुरु चरणमां पड्या थकां आप. जे बीजा अन्यथा करे छे, ते गच्छाचरणाथी करे छे, एम जाणवू. ८७. पछी उठीने प्रमार्जना करतो, अवग्रहमांथी बाहेर निकलतो 'आवस्सइ' एम बोलतो अने जे क्रिया करवानी होय तेनो आदेश मागे. ८८. वळी वंदन पूर्वक करेळ छे पञ्चख्खाण क्रिया जेणे एवो त्यारपछी बाकी रहेल औधिक अने औपग्रहिक उपधीनी पडिलेहणा करे. ८९. पछी आचायेने वांदिने “वसहि पवेएमि, थंडिलाइं पडिलेहेमि" एम आदेश मागीने वसति संबंधी शुद्धिने करे. ९०. बार पासवणना, बार उच्चारना अने छ काळ ग्रहणना एम त्रीस मांड For Private And Personal Use Only
SR No.020656
Book TitleSaptapadi Shastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarchandrasuri
PublisherMandal Sangh
Publication Year1940
Total Pages291
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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