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आचार्यश्री भ्रातृचंद्रसरि ग्रन्थमाला पुस्तक ५३ मुं. १९३ एवी रीते सत्रमा बतावेल विधिए चैत्यवंदन करवं. जे कारण माटे गच्छाचरणाए जुदी रीते पण देखाय छे, ते जाणवू जोइए. ५९-६०. आठ थोड़, पांच शक्रस्तव, काउस्सग्ग अने साथे लोकिक देवदेवीओनी थोइओनो पाठ करवो ए प्रकारे, चैत्यवंदन सूत्र-सिद्धान्तमा नथी. ६१. ज्ञान अने अविरत देवोमा चैत्य शब्द सूत्रनी अंदर संमत नथी, तेमनो वाचक नथी अने ज्ञानने के देव-देवीओने अरिहंतपणुं संभवतुं नथीज. ६२. तेथी चैत्यवंदनना समयमां एओनो अहि अधिकार नथी. प्रथम उपांग श्री उबवाइ सूत्र, त्रीजो अंग श्री ठाणांग सूत्र अने पांचमो अंग श्री भगवतीजीसूत्र, तेमां दश प्रकारना प्रायश्चित्त बतावेला छे, तेना नाम १-आलोयणारिहे, २पडिक्कमणारिहे, ३- तदुभयारिहे, ४-विवेगारिहे, ५-विउस्सग्गारिहे, ६-तवारिहे, ७-छेदारिहे, ८-मूलारिहे, ९-अणवठ्ठ
पारिहे अने १०-पारंचियारिहे. तिहां काउस्सग्गने प्रायश्चित्तं पांचमो कहेल छे, अने प्रायश्चित्त क्षय स्थानमां (एटले दोपने दूर करवामां) आवे, इहां (देववंदनना अधिकारमां) शुं मायश्चित्त आवे ? अर्थात् न आवे. तो पछी काउस्सग्ग देववंदनना अधिकारमा केम थाय ? अर्थात् न थाय. पछी आग्रह रहित गीतार्थो-सूत्र अर्थना जाणकार जे कहे तेज प्रमाण. ६३-६४ सुत्रमा कहेल तेने छोडीने पूर्वाचार्योए कोइ पण कारणे ए आचरेल छे,शुं कारणे ए आचरेल छे,तेनुं तत्व तो तेओज जाणे. ६५.पण जे भावशुद्धिए आगममां बतावेल विधिपूर्वक देववंदन
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