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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir . आचार्यश्रीभ्रातृचंद्रसरि ग्रन्थमाला पुस्तक ५३ मुं १८५ उपदेशनो विधि, सूत्रानुसारे सुगुरुना मुखवचन सांभळीने हुँ कई छ. गाथा १ थी ३. प्रथम गच्छमर्यादा हारः-श्रीवीरस्वामीना अगियार गणधर अने नव गच्छ हता. गणनो अर्थ गच्छ थाय छे. गण अने गच्छ ए बन्नेनो एकज अर्थ छे. सात गणधरो सात गणने वाचना आपता अने पाछला बे गणनी अंदर एक एक गणने बेबे युगप्रधान गणधर वाचना आपता. एम गणधर अने गच्छनी संख्या जाणवी. आ बीना श्रीकल्पसूत्रमा जणावेल छे. ४-५ वाचना भेदे गणभेद छतां एक संभोग, ए प्रथम भेद श्रीदशाश्रुतस्कंधन आठप्तुं अध्ययन श्रीकल्पसूत्र, तेमां अने एक गण छतां समाचारी भेदथी असंभोग ए बीजो भेद श्रीनिशीथ चूर्णिमां बतावेल छे. ६ ___ हाल विचरतां सर्वसाधुओ एक गणना छे, ते जणावे छः-हालमां विचरतां सर्व मुनिओ श्रीसुधर्मस्वामीना शिष्यो छे, बाकोना दशे गणधरो शिष्यसंतति विनाना मोक्षे गया छे.७ ए कारणे श्रीसुधर्मा स्वामिना गच्छना थइने परस्पर असंभोगी अने जुदा आचारवाळा केम थाय? ते संबंधीनुं स्वरूप बतावेल छे. ८ गणनिश्राविना साधुओनो धर्म न प्रवर्ते ते जणावे छे:-जिनेश्वरोए मुनिओना पांच निश्रास्थान-आलंबन कह्याछे. श्रीठाणांग सूत्रना पांचमां ठाणे, तेथी साधुओ गणनिश्रामा वर्तनारा होय छे. ९ श्रीठाणांगसूत्रना चोथाटाणामां तथा श्रीव्यवहारसूत्रमा श्रीजिनाज्ञारूपधर्म अने पोताना गच्छ For Private And Personal Use Only
SR No.020656
Book TitleSaptapadi Shastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarchandrasuri
PublisherMandal Sangh
Publication Year1940
Total Pages291
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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