________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
१७०
उत्सूत्रतिरस्कारनामा-विचारपट:
देउ"। ए केहा साधुना उपदेश नई मिलइ । ए उपदेश किंवा आदेश कहियइ, डाहउ होइ ते विचारी लेयो । तथा ए स्नात्रना ग्रंथ थोडा दीहाडाना नीपना छइ । ए पहिली सूत्रमाहि अथवा पंचांगीमाहि जन्म स्नात्र जिनप्रतिमानई करिवाना ग्रंथ केहा हुंता ते विचारिवा योग्य छइ । तथा-जे लोकमाहि मंगल प्रदीप कहवाइ छइ । ते सुश्रावक बारव्रतधारक परमेश्वरना बिंब आगलि मूंकी तेहनई पूजइ लूणपाणी करइ, फूल मूंका । मोटर्ड टोडर तोडी एक खंड डावइ हाथि बांधइ बीजउ जिमणउ हाथि त्रीजउ कोटि घाती दीवानई नमस्कार करइ । अग्नि वंदनीय जाणइ । ए केहा साधुनउ उपदेश, केहा मूत्रनीसाखि। तथा असमंजसपणउ घणा गीतार्थ कहइ छइ। ते लिखियइ छ।। गाथा-"गद्दरि पवाहओ जो, पइ नयरं दीसए बहुविहो य । __ जिनगिह कारवणाई, सुत्त विरुद्धो असुद्धो य ॥१॥ पाए अणंत देउल, जिणपडिमा कारिया अणंताओ।
असमंजस वित्तीए, नय सिद्धो दसण लवोवि ॥२॥"
तथा-"पइदिण गमणेण तस्स पच्छित् । पचतिहीसे च कारणे गमणं।" तथा "सन्नाण चरण दसण पमुक्क साहू हिं०॥
इत्यादि संकेत मात्रं ॥ "प्रोत्सर्पद् भश्मराशि ग्रहसख दशमाश्चर्य साम्राज्यपुष्य मिथ्यात्वध्वांतरुद्धे जगति विरलतां याति जैनेंद्रमार्गे ।
For Private And Personal Use Only