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उत्सूत्र तिरस्कारनामा- विचार पटः
प्रतिमा देखी समवसरणस्थित श्रीवीतरागनीपरि उल्हास ऊपजिवानउ ठाम || यदुक्तं - श्री आवश्यकनियुक्त - " तित्थयरगुणा पडिमासु, नथ्थि निस्संसयं वियाणंतो । तित्थयरत्ति नमतो, सो पावइ निज्जरं विउलं ॥ १ ॥ "
इति वचनात् ॥ " स्वामी पद्मासनविराजमान छन्त्रत्रयी चामरशोभित नाशाग्रन्यस्तदृष्टि चिदानंद स्वरूप निर्विकार" एहवो वीतरागन ध्यान आणतां घणी निर्जरा छइ । त ras श्रावक अरिहंत विद्यमाननइ जिणि भावि वंदन पूजन करता, तिणि विधि अरिहंतनी प्रतिमानी भक्ति हिवडी संभावियइ छ । साधुन उपदिस्यउ डाहा श्रावकनउ कर्त्तव्य सूत्रानुसारिए जाणीयइ छइ । अनई वली जिहां सतरभेदपूजा छह, देवता मनुष्यनी कीधी, तिहां जिनप्रतिमा एहवउ नाम दीसह छइ । परं ऋषभ अजितादि तीर्थंकरना नाम नथी । rिasi प्रतिमाना नाम तीर्थकरना थाप्या दीसइ छ । अनड़ जिहां श्रावक साधुन अधिकारि सूत्रमाहि जिनप्रतिमानइ नामि चैत्य अरिहंतचैत्य एहवा शब्द छई । ते विशेष गीतार्थ कहइ तिम प्रमाण | सूरियाभ द्रौपदी विजय देवता दिकनइ | अधिकारि पंचाभिगम नथी बोल्या, अनई श्रावकनई जिनभुवन पंचाभिगम बोल्या | पछड़ जिम हुइ तिम प्रमाण । अन जइ कोइ इम कहिस्य विद्यमान तीर्थकरनी भक्ति अनेरी । तिनी स्थापनानी भक्ति अनेरी । जइ इम तउ स्थापनाचार्यनई पुष्पादि पूजा स्नात्र निरंतर नथी कीजतउ
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