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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १६४ उत्सूत्र तिरस्कारनामा - विचारपट : एतले ठामे मूलसूत्रमाहि श्रावकनई अरिहंत चैत्यवदिवाना अक्षर छइ । परं पूजिवाना अक्षर विवरासुध मूल सूत्रमाहि दीसता नथी ॥ तथा श्री आवश्यकमूल सूत्रमाहि "सब लोए अरिहंतचेइयाणं, वंदणवत्तिआए पूअणवत्तिआए, " इत्यादि अक्षर काउसग्गन अधिकारि छइ परं ते साधु श्रावकनई सरीषा छइ । तथा चडवी सध्ययनइ मूलपाठि । कित्तिया बंदि - या मए, एहवउ छइ, ते पुण साधु श्रावकनई तुल्य छइ । तथा पाठांतरे महिया इम कही व्याख्या कीधी छन्, महिताः पूजिताः पुष्पादिभिरिति । परं ए पाठ कहतां साधुन विपरीत दीसर, तथा सामाइकघर श्रावकनई पुण मिलतउ दीसतउ नथी, पछs वली जिम गीतार्थ कहइ तिम प्रमाण । तथा सूत्रमाहि जिहां पूजानउ शब्द आव्यउ छइ तिहां सर्वत्र पुष्पादिभिः, इम वखाण्यउ छइ, परं ए समुच्चयपदि जाणियइ छइ, एह ऊपरि साधुन उपदेसि फूलइज एकांति सही न थाइ । अन निषेधाइ पुण नहीं । जिम रायपसेणीमाहि केसीकुमार श्रमण वंदनाधिकारि, उववाह उपांग श्रीवीरवंदनाधिकारि एवं ठामि २ अपेगतिया वंदणवत्तियाए । अप्पेगतिया पूयणवत्तियाए । एहवा अक्षर छ । तिहांपुण पुष्पादिभिः इम इज वखाणि छतु इहां इम जाणियइ छइ जु तीर्थकर विजय अनइ साधु तेहनी कोटि डाहउ श्रावक फूलनी माल चडावतर संभावियह नही । पछड़ गीतार्थ कहइ तिम प्रमाण । तथावली उपासक दशांग श्रीवीर नइ वर्णनि “तेलुक विद्दियमहिए" For Private And Personal Use Only
SR No.020656
Book TitleSaptapadi Shastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarchandrasuri
PublisherMandal Sangh
Publication Year1940
Total Pages291
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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