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आचार्यश्रीभ्रातृचंद्रसरि ग्रन्थमाला पुस्तक ५१, मुं १६३
वउ । इणिपरि एकलाख उगुणसहि सहस्र श्रावकनइ अधिकारि सम्यक्त्वोच्चार चरितानुवादि उपदेश सरीषउ जाणिवउ । तथा श्रीउववाई उपांगि अंबडपरिव्राजक तथा तेहना शिष्य ७०० परिव्राजकनउ सम्यक्त्वनइ उच्चारि श्रीमहावीरनउ भाषित अंबड श्रमणोपासकनइ विधिवादि उपदेश छइ । तउ इम जाणियइ श्रीवीतरागि परिव्राजकानुष्टान सर्वबीजां परिवाजका सरीषां कह्यां । तिहां जाणीइ छइ अंबडनई ए परिब्राजकानुष्टानविधि छइ । परं जे इम काउं “अंबडस्सणं नोकप्पति अजप्पमिति अन्नउथिए वा, अन्नउथ्थिय देवयाणि वा, अन्नउथियपरिग्रहियाई चेइयाणि वा, वंदित्तए वा नमंसित्तए वा, पज्जुबासित्तए वा, ननथ्य अरिहंते वा अरिहंतचेइयाणि वा ॥" ए अनुष्शन बीजापरिव्राजकथकी विपरीत दीसइ छइ ।। तथा १२ व्रत ए पुण अनेरापरिव्राकनउ कर्त्तव्य न बोल्यउ । तिणि कारणि जाणिज्यो (जु) अरिहंतचैत्य कहतां श्रीअरिहंतनी प्रतिमा तेहनउ वंदनादिक अधिकार श्रमणोपासकनउ कर्त्तव्य छ।।। यद्यपि अंबडना नाम लीधाभणी चरितानुवाद किवारइ मनमाहि आवइ, परं श्रीवीर भाषित भणी विधिवाद सरीषउ छइ । तथा वली छेदग्रंथमाहिगाथा-पुणोवि वीयरागाणं, पडिमाउ चेइयालए ।
पत्तेयं संथुणे वंदे, एगग्गो भत्तिनिप्भरं ॥१॥
तथा वली उपधान वह्या अनंतर गुरु श्रावकनई काजि त्रिकालचैत्यवांदिवा उपदेश देवाना अक्षर छेद ग्रंथमाहि छ।।
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