SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 85
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ननु-स्यान्नित्यो घट इत्यत्र स्याच्छब्दः कथञ्चिदर्थकः, अवच्छिन्नत्वं संसर्गः, द्रव्यरूपावच्छिन्ननित्यत्ववान् घट इति बोधश्च प्रथमवाक्यस्य युक्तः । द्वितीयवाक्ये चानित्यपदस्य नित्यभेदोऽर्थः, एवं च पर्यायरूपावच्छिन्ननित्यभेदवान् घट इति बोधः प्राप्नोति । स चायुक्तः। द्रव्यरूपेण नित्ये घटे नित्यभेदस्य बाधितत्वात्; भेदस्य व्याप्यवृत्तित्वात् । इति चेदुच्यते;मूले वृक्षस्संयोगी नेत्यबाधितप्रतीत्याभेदस्याप्यव्याप्यवृत्तित्वमंगीक्रियत एव । अव्याप्यवृत्तित्वं च प्रकृते प्रतियोगिवृत्तित्वम् । संयोगिभेदस्य प्रतियोगी संयोगवान वृक्षः, तद्वृत्तित्वं संयोगिभेदस्याक्षतम् ; वृक्षे मूलावच्छेदेन संयोगिभेदस्य सत्त्वात् । तथा च घटेपि पर्यायावच्छेदेन नित्यभेदो वर्तत इति पर्यायरूपावच्छिन्ननित्यभेदवान् घट इति बोधे न कापि क्षतिरिति बोध्यम् । __प्रश्नः-'स्यान्नित्यो घटः' कथंचित् घट नित्य है. इस वाक्यमें स्यात् शब्दका अर्थ कथंचित् है, अवच्छिन्नत्व संसर्गतारूपसे भासता है. इसलिये द्रव्यरूपसे अवच्छिन्न जो नित्यत्व उस नित्यत्व युक्त घट, यह बोध प्रथम वाक्यका होना युक्त है, और द्वितीय वाक्यमें तो अनित्य पदका नित्य भेद अर्थ है. इस प्रकारसे पर्यायरूपसे अवच्छिन्न नित्य भेदवान् घट, ऐसा बोध होना द्वितीय वाक्यका प्राप्त होता है । और वह वाक्यार्थ होना अयोग्य है. क्योंकि जव द्रव्यरूपसे घट नित्य है तब उसमें नित्यका भेद बाधित है। और भेद व्याप्य वृत्ति है इस हेतुसे भी नित्यमें नित्यका भेद नहीं रह सकता ? यदि ऐसी शङ्का करो तो इसका उत्तर कहते हैं 'मूले वृक्षः संयोगी न' मूल देशमें वृक्ष मर्कट आदिके संयोगसे युक्त नहीं है बिना किसी बाधाके यह प्रतीति होनेसे भेदकी अव्याप्यवृत्तिता अङ्गीकार करते हैं । और अव्याप्यवृत्तित्व इस प्रकृत प्रसंगमें प्रेतियोगि वृत्तित्वरूप मानते हैं । और संयोगिभेदका प्रतियोगी संयोगवान् वृक्ष है, उसके किसी देशमें संयोगीका भेद भी पूर्णरूपसे है. क्योंकि शाखादि देशमें यद्यपि वृक्ष कपि संयोगी है तथापि मूल देशमें संयोग भेद भी उसमें विद्यमान है । इसी रीतिसे घटमें पर्याय अवच्छिन्नमें नित्यका भेद भी है इस प्रकारसे पर्यायरूपसे अवच्छिन्न नित्यके भेदसे युक्त घट है, ऐसे ही द्वितीय वाक्यार्थ होनेमें कोई हानि नहीं है ऐसा समझना चाहिये । __एकत्वानेकत्वसप्तभंगी यथा-स्यादेको घटः, स्यादनेको घट इति मूलभंगद्वयम् । द्रव्यरूपेणैको घटः, स्थासकोशकुसूलादिषु मृद्रव्यस्यैकस्यानुगतत्वात् , तस्योर्ध्वतासामान्यरूपत्वात् । पर्यायरूपेणानेको घटः, रूपरसाद्यनेकपर्यायात्मकत्वात् घटस्य । एकत्व तथा अनेकत्व सप्तभङ्गी की योजना इस रीतिसे करनी चाहिये-"स्यादेको घटः स्यात् अनेकः घटः” कथंचित् घट एक है और कथंचित् अनेक है, ये दो मूल भंग हैं । यहां पर द्रव्यरूपसे तो एक ही घट है, क्योंकि एक मृत्तिकारूप द्रव्य पिण्ड १ नित्यके भेदसे युक्त. २ जिसकी सत्ता पदार्थके सर्व देशमें रहे, जैसे तिलमें तेल. ३ भान अथवा बोध. ४ पदार्थके एक देशमें रहनेवाला. ५ जिसका अभाव कहा जाता है वह प्रतियोगी कहा जाता है जैसे नित्य भेदका प्रतियोगी नित्य है, संयोगिभेदका प्रतियोगी संयोगवान् वृक्ष है. For Private And Personal Use Only
SR No.020654
Book TitleSaptabhangi Tarangini
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimaldas, Pandit Thakurprasad Sharma
PublisherNirnaysagar Yantralaya Mumbai
Publication Year
Total Pages98
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size57 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy