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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ___ तत्र घटस्य किं स्वरूपम् ? किंवा पररूपम् ? इति चेत् ; -घट इत्यादिबुद्धौ प्रकारतया भासमानो घटपदशक्यतावच्छेदकीभूतसदृशपरिणामलक्षणो यो घटत्वनामको धर्मस्स घटस्य स्वरूपं, पटत्वादिकं पररूपम् । तत्र घटत्वादिरूपेणेव पटत्वादिरूपेणापि घटस्य सत्त्वे घटस्य पटात्मकत्वप्रसङ्गः, पटत्वादिनेव घटत्वादिनाप्यसत्त्वे सर्वथा शून्यत्वापत्तिः, शशविषाणवत्। अब यहांपर घटका अपना निजस्वरूप क्या है, और परस्वरूप क्या है । यदि ऐसी शंका करो तो उत्तर यह है-घट, इत्यादि बुद्धिमें विशेषरूपसे भासता हुआ जो घटपदका शक्यतावच्छेदक अर्थात् जो सब घटमें अनुगतरूपसे घटपदकी शक्तिसे कहा जाता है वही घटत्वरूप धर्म घटका स्वरूप है और पटत्व आदिरूप घटके पररूप है यहांपर अपने घटत्वस्वरूपसे जैसे घटका सत्त्व है ऐसे ही परकीय पटत्वरूपसे भी यदि सत्त्व ही मानोगे और अन्यरूपसे भी अस्तित्व मानोगे तो घट भी पटखरूप हो जायगा । क्योंकि घटका जैसे अपने घटत्वस्वरूपसे सत्त्व है ऐसे परकीय पटत्वस्वरूपसे सत्त्व है तो दोनोंके सत्त्व स्वरूपमें भेद न होनेपर घट पट हो जायगा । और घटका घटसे अन्य पटत्व आदि स्वरूपसे जैसे असत्त्व मानते हैं ऐसे ही यदि अपने घटत्वस्वरूपसे भी असत्त्व ही मानों तो शशशृङ्गके तुल्य सर्वथा शून्यवादका प्रसङ्ग हो जायगा।। अथवा-नामस्थापनाद्रव्यभावानां मध्ये यो विवक्षितस्तत्स्वरूपं, इतरत्पररूपम् । तत्र विवक्षितेन रूपेणास्ति अविवक्षितेन नास्ति । यदि विवक्षितेनापि रूपेण नास्ति, तर्हि शशविषाणवदसत्त्वमेव घटस्य प्राप्नोति । यदि चाविवक्षितेनापि रूपेणास्ति, तदा नामादीनां परस्परभेदो न स्यात् । अथवा नाम स्थापना द्रव्य तथा भाव इन चार निक्षेपोंमेंसे जो विवक्षित है वही घटका स्वरूप है, और उससे भिन्न पररूप है । उसमें विवक्षित रूपसे तो घटका अस्तिस्वरूप है और अविवक्षित रूपसे नास्तिस्वरूप है । क्योंकि यदि विवक्षित स्वरूपसे घटका नास्ति स्वरूप ही माना जाय तो शशशृङ्गके तुल्य घटका असत्त्व ही प्राप्त होता है। और यदि अविवक्षित रूपसे भी अस्ति ही घटका स्वरूप मानों तो नाम स्थापना आदिका परस्पर भेद नहीं होगा, क्योंकि यदि विवक्षित तथा अविवक्षित दोनोंरूपसे सत्त्व ही स्वरूप है तब सत्त्वरूप जैसे नाममें है वैसे ही स्थापना आदिमें भी है तो परस्पर भेद न रहा । १ जो पदकी शक्तिसे कहा जाय उसको शक्य कहते हैं और शक्यमें रहनेवाला और अन्यसे उस वस्तुको पृथक्कारक जो धर्म है उसको शक्यतावच्छेदक कहते हैं जैसे घटका घटत्व. २ सत्ताका अभाव निज तथा अन्यके स्वरूपसे पदार्थका सत्त्व माननेसे अभाव पदार्थका स्वरूप होगा तो वह खरगोशके सींगके तुल्य असत् ही होजायगा. ३ पदार्थके गुणद्रव्यादि न रखके लोकव्यवहारके लिये नियुक्त जो संज्ञा है उसको नामनिक्षेप कहते हैं जैसे नाम जीव वा नाममात्र घट. ४ काष्ठ पाषाण धातु वा चित्रकर्ममें वही यह पुरुष आदि है ऐसा जो स्थापित किया जाता उसको स्थापनानिक्षेप कहते हैं, जैसे प्रतिमा वा चित्र घट आदि स्थापनाजीव वा स्थापनाघट. ५ वस्तुके गुणोंसे जो युक्त है वा गुणोंके परिणामको प्राप्त है वा होगा. ६ जैसे राजाके पुत्रमें राजा व्यवहार वा पिण्डदशामें घट. ७ कथन करनेको इष्ट. ८असत्व. ९साचे. For Private And Personal Use Only
SR No.020654
Book TitleSaptabhangi Tarangini
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimaldas, Pandit Thakurprasad Sharma
PublisherNirnaysagar Yantralaya Mumbai
Publication Year
Total Pages98
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size57 MB
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