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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३८ शब्दोंकी क्या आवश्यकता है ॥ इस रीतिसे पर्यायार्थिक नयकी प्रधानतामें यथार्थमेंही अस्तित्व नास्तित्व आदि अनेक गुणोंकी एक वस्तुमें अभेदसे स्थितिका असम्भव होनेपर काल तथा आत्मरूप आदिसे परस्पर भिन्न भी गुणोंका कथंचित् अभेदका उपचार किया जाता है। ___ एवं निरूपिताभ्यामभेदवृत्त्यभेदोपचाराभ्यामेकेनास्तिनास्त्यादिशब्देनोपात्तस्याशेषधर्मात्मकस्य घटादिवस्तुनः स्यात्कारोद्योतकस्समवतिष्ठते । इत्येवं पदार्थो निरूपितः ॥ ___ इस प्रकारसे पूर्व कथित द्रव्यार्थिक नयकी अपेक्षासे अभेदवृत्ति तथा पर्यायार्थिक नयकी अपेक्षासे अभेदोपचार इन दोनोंके द्वारा, एक अस्तिसे तथा एक अस्ति आदि शब्दसे कथित जो सम्पूर्ण अस्तित्व नास्तित्व आदि धर्ममय घट आदि वस्तु हैं उनकी अनेकान्तस्वरूपताद्योतक हो कर 'स्यादस्ति घटः' इत्यादि वाक्यमें स्यात् शब्द स्थित रहता है । इस प्रकार सप्तभङ्गोंके स्यात् तथा अस्तिआदि पक्षका अर्थ निरूपण किया गया । वाक्यार्थो निरूप्यते । स्यादस्त्येव घटः, स्यान्नास्त्येव घटः, इत्यस्य स्वरूपाद्यवच्छिन्नास्तित्वाश्रयो घटः, पररूपाद्यवच्छिन्ननास्तित्वाश्रयो घटः, इतिच बोधः । घटादिरूपे वस्तुनि स्वरूपादिना सत्त्वम् पररूपादिनाऽसत्त्वञ्चाङ्गीकरणीयम् । अन्यथा वस्तुत्वस्यैव विलयापत्तेः स्वपररूपोपादानापोहनव्यवस्थाप्यं हि वस्तुनो वस्तुत्वम् । ___ अब इसके अनन्तर वाक्यार्थका निरूपण करते हैं। उनमें स्यादस्त्येव घटः तथा, स्यान्नास्त्येव घटः, अपने कम्बुग्रीवादिरूप घटत्वसे अवच्छिन्न जो अस्तित्व धर्म है उसका आश्रय वा आधार घट, यह प्रथम वाक्यका, और परकीय पटत्व आदिरूपसे अवच्छिन्न नास्तित्वका आश्रय घट, यह द्वितीय वाक्यका अर्थ है । भावार्थ यह है कि, घट है ऐसे वाक्यसे जिस प्रकार घटसे कम्बुग्रीव आदि स्वरूपका भान होता है वैसे ही यह पट आदि अन्यवस्तु नहीं है किन्तु घट है इस रीतिसे अन्यका निषेध भी भासता है; अत एव अन्यपदार्थके रूपादिसे नास्तित्वका आश्रय घट है यह विषय अर्थात् अपने रूपादिसे सत्त्व और अन्यके रूपादिसे असत्त्व सूक्ष्मरूपसे अन्तःकरणमें भासता है, उसका अनुसन्धान कुशल बुद्धिवालोंको होता है । क्योंकि घट आदि समस्त वस्तुरूपमें अपने रूप आदिसे सत्त्व तथा अन्यके रूप आदिसे असत्त्व भी अवश्य अङ्गीकार करना चाहिये । इसके विरुद्ध अर्थात् सत्त्व अथवा असत्त्व इनमेंसे एक ही वस्तुका स्वरूप माननेसे वस्तुका जो वस्तुत्व है उसका विलय हो जायगा । क्योंकि अपने स्वरूपके ग्रहण तथा अन्यके स्वरूपके त्यागसे ही वस्तुके वस्तुत्वका व्यवस्थापन किया जाता है। १ यथार्थमें पर्यायोंका परस्पर भेद रहते भी एक द्रव्य मानके अभेदका उपचार ( उपलक्षण ). २ प्रकाशक, निपातोंके द्योतकत्वपक्षमें कृत अर्थका प्रकाश मात्र स्यात् शब्दसे है. ३ पदसमुदायका अर्थ । पदोंके समूहको वाक्य कहते हैं प्रथम पदोंका अर्थ कहा अब वाक्यका अर्थ कहते हैं. ४ अपने धर्मद्वारा अन्य पदार्थोंसे पृथक किया हुआ है. ५ शङ्खके आकारके सदृश गलासहित. ६ नाश वा सबकी अभावरूपता. ७ वस्तुमें रहनेवाला उसका यथार्थ खरूप. For Private And Personal Use Only
SR No.020654
Book TitleSaptabhangi Tarangini
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimaldas, Pandit Thakurprasad Sharma
PublisherNirnaysagar Yantralaya Mumbai
Publication Year
Total Pages98
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size57 MB
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