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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir बांदा। ३७ दक्षिण पश्चिम ६० सड़क से २० मील ( अलाहाबाद से मील व रीवां से उत्तर पश्चिम ६० मील ) - यह विन्ध्य पर्वतों के ऊंचे शिखर पर हैं- कियान या केन नदी से जो ८ मील दूर है, दिखाई पड़ता है । यह किला ७०० या ८०० फुट ऊंचा है। अजयपाल ने इसे स्थापित किया था । तरहौनी द्वार की चट्टान में एक लम्बा लेख है जो ७ फुट से २० फुट ४ इंच है। इस में चंदेल राजा के बहुत से नाम हैं जो कीर्तिवर्मा से शुरू होकर मोडावर्मा तक समाप्त होते हैं। यहां बहुत सी जैन मूर्तियां पद्मासन अंकित हैं । यह लेख १५ लाइन का है । जिसका भाव यह है "चंद्रवंश में राजा कीर्तिवर्मा उसके पुत्र सुलक्षणवर्मा - जिसने मालवा जीता इसके पुत्र जयवर्मा - उसके पुत्र पृथ्वीवर्मा, उसके पुत्र मदनवर्मा उसके पुत्र त्रैलोक्य वर्मा उसके दो पुत्र यशोवर्मा और वीरवर्मा । वीर वर्मा राजा ने राजा गोविंद की कन्या व्याही | लेख वि० स० १३१२ वैशाष बदी १३ का है । इससे इन राजाओं का जैन धर्मी होना मालुम पड़ता है क्योंकि लेख के पास जैन मूर्तियां अंकित हैं । डा० फुहरर की रिपोर्ट से मालूम हुआ: (५) मोरफा पहाड़ी का किला - तहसील बदौसा से म मील। बांदा से दक्षिण पूर्व ३८ मील । किले के भीतर तीन भग्न जैन मन्दिर हैं उनमें एक लम्बा लेख ३ लाइन का है जिसमें संवत् १४०४ में सिद्धितुङ्ग का राज्य व किले का नाम For Private And Personal Use Only
SR No.020653
Book TitleSanyukta Prant Ke Prachin Jain Smarak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad Bramhachari
PublisherJain Hostel Prayag
Publication Year1923
Total Pages160
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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